ग़ज़ल
ज़िंदगी मझधार की पतवार है किसको पता ?
किसके हिस्से में यहां पर खार है किसको पता ?
कर सको पूरा रखो तुम शौक़ उतना ही करीब ,
शौक़ मसलन इश्क़ में बाजार है किसको पता ?
भूलकर जाना कभी मत आदमी की शक्ल पर ,
कौन अच्छा या बुरा क़िरदार है किसको पता ?
वक्त कितना भी बुरा हो कट ही जाता है यहां,
वक्त से लड़ना मगर अधिकार है किसको पता ?
धर्म को धंधा बना जो बांटते हैं मुल्क को ,
वो ही असली देश का गद्दार है किसको पता ?
सच बना रहता हमेशा, झूठ गर साबित न हो ,
हां! वही सच झूठ का आधार है किसको पता ।
आज अधिकारों से वंचित जी रही रकमिश मगर
आम जनता ही यहां सरकार है किसको पता ?
– Rakmish Sultanpuri