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गीत _ "एक मैं सुधि के सहारे पागलों का जग रहा हूँ।

22 मार्च 2022

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रात्रि का मध्यम चरण है, और दुनिया नींद में है
एक मैं सुधि में तुम्हारे  पागलों - सा जग रहा हूं।

ग्रीष्म के आरंभ की यह पूर्ण विकसित पूर्णिमा है
धवल ज्यों मुखड़ा तुम्हारा, आज ऐसी चांदनी है ।
शांत शीतल मंद मलयज पवन में  मैं खो रहा हूं -
एक छवि मन में बसाए,  जो कि इकलौती बनी है।
कांति अपने शीर्ष पर  है, शांति अपने शीर्ष पर है।
और मैं यह नींद वारे, पागलों -सा जग रहा हूं।

चांद-यह साथी हमारा, जाने कितनों का परमप्रिय
मैं इसे बतला रहा हूं - तुम हमारे हेतु क्या हो!
तुम हमारी प्रेरणा हो, साधना , आराधना हो
प्राण अविनाशी व नश्वर देह मध्यक सेतु, क्या हो!
और यह चुप सुन रहा है , धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
मैं सुखद कल  के सहारे पागलों सा जग रहा हूं।

रात्रि का मध्यम चरण है, और दुनिया नींद में है
एक मैं सुधि में तुम्हारे  पागलों - सा जग रहा हूं।


-- प्रभात पटेल पथिक

प्रभात पटेल

प्रभात पटेल

आभारी हूं

23 मार्च 2022

भारती

भारती

बहुत ही बढ़िया 👌🏻👌🏻

23 मार्च 2022

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विरह घट
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विरह गीतों का संग्रह है जिसमे मेरे द्वारा रचित विरह भाव को केंद्र में रखते हुए गीत रचे गए हैं।

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