गीतिका, समांत- आन, पदांत- बना लें
चलो तराशें पत्थर को, भगवान बना लें
उठा उठा कर ले आएं, इंसान बना लें
नित्य करें पूजा इनकी, दिल जान लगाकर
तिनका तिनका जोड़ें और मकान बना लें।।
जितना निकले राठ भाठ, सब करें इकट्ठा
ईंटों का सौदा कर कर, पहचान बना लें।।
सिर फूटा किसका किसकी शामत आई
रगड़ें पत्थर इससे बड़ी मचान बना लें।।
झूठ पढ़ाएं झूठ सुनाएँ सबको साथी
चौराहे पर अपनी एक दुकान बना लें।।
बिकती है हर चीज यहाँ फैशन की महिमा
चकमक सा दिखने वाला सामान बना लें।।
बिकने वाले बहुत मिलेंगे रे गौतम सुन
करें दलाली, पैसे को ईमान बना लें।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी