गुरुर्ब्रह्म्मा गुरुर्विष्नु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
नामकरण :-----
एक दिन संत दोपहर को विश्राम कर रहे थे कि रामचंद्र नाम का एक क्रोधित शिष्य उनके पास आया। शिकायत भरे शब्दों में उसने कहा,‘गुरुदेव, लोग बड़े अहंकारी हो गए हैं, देखिए न, सामने किसी मूर्ख ने कटिंग-सैलून खोला है और उसका नाम रखा है- ‘गुरुदेव सैलून’। आप फौरन उसे बुलवाकर नाम बदलने को कहें, नहीं तो मैं अभी उसकी दुकान को आग लगा दूंगा।’ गुरु जी ने सुना तो उन्हें हंसी आ गई। बोले,‘अरे वाह, मुझे तो आज ही मालूम हुआ कि वह सैलून है।
हनुमानजी ने तो लंका इसलिए जलाई थी कि पापी रावण ने सीताजी का अपहरण कर उन्हें लंका में छिपा रखा था। क्या इस सैलून वाले ने भी कुछ ऐसा ही कर रखा है
जो तुम सैलून जलाने की सोच रहे है, मुझे तो ऐसा नहीं दिखाई देता। वह वहां बाल काटने का काम करता है और अपने परिवार के पालन-पोषण का सत्कर्म करता है। इस तरह वह सैलून तो मंदिर के समान पवित्र है। तब क्या तुम इस मंदिर को जलाओगे ,
’रामचंद्र को चुप देख वे बोले,‘अरे हां, तुम्हे तो सैलून के नाम पर आपत्ति है! मगर नामकरण तो पिता द्वारा किया जाता है। तेरा नाम रामचंद्र भी तो तेरे पिता ने कुछ सोच कर ही रखा होगा, मगर इससे प्रभु रामचंद्रजी को क्रोध आया होगा कि तेरे पिता ने उनका ही नाम क्यों चुना/’
भावुक शिष्य रामचंद्र के लिए इतना ही पर्याप्त था। वह बड़ा लज्जित हुआ और गुरुदेव के चरणों पर गिर कर उनसे क्षमा मांगी। तब वे उसे उठाते हुए वे बोले,‘जा उस सैलून वाले से कह कि आज रात को हम लोग उसके सैलून में ही भजन करेंगे।’