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"छंद

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"छंद रोला मुक्तक”पहली-पहली रात निकट बैठे जब साजन।घूँघट था अंजान नैन का कोरा आँजन।वाणी बहकी जाय होठ बेचैन हो गए-मिली पास को आस पलंग बिराजे राजन।।-१खूब हुई बरसात छमा छम बूँदा बाँदीछलक गए तालाब लहर बिछा गई चाँदी। सावन झूला मोर झुलाने आए सैंया-

हंसगति ( २० मात्रा ) शिल्प विधान --- ११,९= २० प्रथम चरण ११ मात्रा चरणान्त २१ से अनिवार्य"छंद हंसगति"जस वीणा रसधार भरी है माता।कर शारद उपकार भक्त का नाता।।नमन करूँ दिन-रात मातु मम भोली।भर शब्दों का ज्ञान सहज हो बोली।।-१झंकृत हों सब तार मृदुल धुन गाऊँ।छंद सृजन अनुसार राग अप

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