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अर्थी

hindi articles, stories and books related to ARTHI


अर्थ जीते जी तो लोग नजर चुराते हैं, उंगली उठाने में खोए रहते हैं और मरते ही लोग कंधा देने चले आते हैं। चार का रिवाज कम सा हो रहा है। क्योंकि अब के इंसान का शरीर बेदम हो गया है। सिर्फ मुंह में जुबान और हाथ में कमान रह गई है। घरों से कई तानें बाने में बुनी चारपाई हट गई है। जिस पर बैठ लोग कितनी ही बात

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एक और दानामांझी: सिंदूर तो दिया,अर्थी न दे पाया चंद्रमणी-एक और दानामांझी: सिंदूर तो दिया,अर्थीन दे पाया चंद्रमणी-‘गरीब को नहीं मिलता/डोली को कंधा/अर्थी कौन उठाता है/जहां मिलता नहीं फायदा/वहां पर मुंह भी नहीं खुलता है/सिंदूर की किमत कम ना हो

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