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poetry

hindi articles, stories and books related to poetry


कुछ हुनर बेवफाई केअपनी यादों को भी सीखा देतेवक्त बेवक्त चली आती हैयादें तेरी याद दिला जाती है इश्क में मिली जो तुमसे रुसवाईएक कसक सी उठती हैजख्म कुरेदती तेरी बेवफाईजब जब तुझे भुलाने लगते हैख्याल

रेत का घर है सारी ख्वाहिशेंशिद्दत से जिसे सजाते हैएक लहर मेंबेरहमी से सब बह जाते हैलहरें बन सारे अपने ही आते हैउम्मीदों और खुशियों को पल में बहा ले जाते हैरेत का घर सामेरी चाहतों का घरोंदा ह

           मुझको पैरों पे खड़े होना सिखाया माँ ने ।              मेरे किरदार को आईना बनाया माँ ने ।       चाहे खुद कितनी

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जीवन के मधु प्यास हमारे, छिपे किधर प्रभु पास हमारे?सब कहते तुम व्याप्त मही हो,पर मुझको क्यों प्राप्त नहीं हो?नाना शोध करता रहता हूँ, फिर भी विस्मय में रहता हूँ,इस जीवन को तुम धरते हो, इस सृष्टि को तुम रचते हो।कहते कण कण में बसते हो,फिर क्यों मन बुद्धि हरते हो ?सक्त हुआ मन निरासक्त पे,अभिव

पुर्जों से बना मैं यांत्रिकी का यश था। दंगाइयों ने जला दियाहाँ मैं DTC बस था। वातानुकूलित लाल थासमान्य रंग था हरियाली। देखो ना रंग धुल गयापर गया कोयले सी काली। धर्म निरपेक्ष रहा मैंकरने दी सबको सवारी। फिर क्यों मुझे फुंक दियाआखिर कया गलती थी हमारी। खड़ा हुआ जब भी कोई मुद्द

इलाहाबाद अपना घर, गाँव,और शहरया यूँ कहियेअपनी छोटी सी इक दुनिया।इसके बारे में कुछ कहना-लिखना, जैसे आसमान में तारे गिननाया जलते हुए तवे परउंगलियों से अपनी ही कहानी लिखना है।सैकड़ों ख्वाब, हज़ारों किताब और अनगिनत रिश्तों में बीतती जिंदगी का नाम है इलाहाबाद। एक ऐसी जगहजहाँ हर पल, हर लम्हाबनती-बिगड़ती ह

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ओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठीसबने कहा , क्या मिलेगा मुझेउस योगी के संगजिसका कोई आवास नहींवो फिरता रहता हैबंजारों साजिसका कोई एक स्थान नहींसब अनसुना अनदेखा कर दिया मैंनेअपने मन मंदिर में तुमको स्थापित कर बैठीओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठीसबने समझाया , उसका साथ है भूतो और पिशा

खुद पे यकीन करने वाले खुदा से क्यूँ डरे, खुद पे शक करने वाले खुदा पे क्यूँ हसे!खुद को कर इतना बुलंद कर खुदा पूछे जीने की रज़ा क्या हैं तेरी,खुद को इतना कमज़ोर मत कर की तू खुदा के दरगाह पे जा कर पूछे ज़िन्दगी सजा क्यूँ हैं मेरी!!!

काश आप रहते तो समझ पाते,मेरा मन के दर्द को देख पाते!वो अकेलेपन का एहसास को देख पाते!काश आप रहते तो समझ पाते!!!वो दिन भी क्या दिन थे जब आप मेरे साथ थी, आज वो दिन भी क्या दिन हैं जिसमे आपका साथ ही नहीं! आज कल सोते सोते नींद खुल जाती हैं अक्सर आपकी याद मे,काश आप होते तो देख पाते!रिश्तो मे समझदारी बहुत

आदतन मोहब्बत नहीं हुई थी मुझकोआदतन उसका यूँ टकरा जाना याद आता रहाआदतन बेखौफ बढ़ता रहा मैं उसकी ओरआदतन वो मिलने का दस्तूर निभाता रहाआदतन मैं रेत पर घर बनाता रहाआदतन वो मेरा सब्र परखता रहाआदतन मैं ख्वाब बुनता रहाआदतन वो उनसे नज़रें चुराता र

थक चूका हूँ , पर हारा नहीं हूँमैं निरंतर चलता रहूँगाआगे बढ़ता रहूँगाउदास हूँ ,मायूस हूँपर मुझे जितना भी आज़मा लो ,मैं टूटूँगा नहीं ,मैं निरंतर कोशिश करता रहूंगा,पर अपनी तक़दीर को, तक़दीर केहवाले सौंप , हाथ बाँधबैठूंगा नहीं ,मैं निरंतर कोशिश करता रहूंगा ,अपनी तक़दीर को कोसूंगा

मेरी कलम , जिससे कुछ ऐसा लिखूँके शब्दों में छुपे एहसास कोकागज़ पे उतार पाऊँऔर मरने के बाद भी अपनीकविता से पहचाना जाऊँमुझे शौक नहीं मशहूर होने काबस इतनी कोशिश है केवो लिखूं जो अपने चाहने वालोंको बेख़ौफ़ सुना पाऊँये सच है के मेरे हालातोंने मुझे कविता करना सीखा दियारहा तन्हा

जाओ तुम्हें माफ़ किया मैंनेबस इतना सुकून हैजैसा तुमने कियावैसा नहीं किया मैंनेजाओ तुम्हें माफ़ किया मैंनेहाँ खुद से प्यार करती थीमैं ज़रूरपर जितना तुमसे कियाउस से ज़्यादा नहींतुम्हारी हर उलझनों कोअपना लिया था मैंनेजाओ तुम्हें माफ़ किया मैंनेतुम्हारी लाचारियाँ मज़बूरियाँसब स्वीकार थी मुझकोसिर्फ उस रिश्ते

आओ दिखाऊं तुम्हें अपनी चमचमाती कारजिस के लिए ले रखा है मैंने उधार दिखावे और प्रतिस्पर्धा में घिर चूका हूँ ऐसे समझ में नहीं आता कब कहा और कैसे किसी के पास कुछ देख के लेने की ज़िद्द करता हूँ एक बच्चे के जैसे और फिर पूरा करता हूँ उधार के पैसे कटवा के अपना वेतन हर बार आओ

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आज कल ओझल हो गयी है हिंदी एसेमहिलाओं के माथे से बिंदी जैसेकभी जो थोड़ा बहुत कह सुन लेते थे लोगअब उनकी शान में दाग हो हिंदी जैसेलगा है चसका जब से लोगों अंगरेजियत अपनाने काअपने संस्कारों को दे दी हो तिलांजलि जैसेअब तो हाय बाय के पीछे हिंदी मुँह छिपाती हैमात्र भाषा हो

कविता खुशबू का झोंका, कविता है रिमझिम सावनकविता है प्रेम की खुशबू, कविता है रण में गर्जनकविता श्वासों की गति है, कविता है दिल की धड़कनहॅंसना रोना मुस्काना, कवितामय सबका जीवनकविता प्रेयसी से मिलन है, कविता अधरों पर चुंबनकविता महकाती सबको, कव

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मजदूर, ऐसा शब्द,जिससे प्रायः हम सभी परीचित होंगे,वही गंदे पुराने कपडे, पसीने से सने हुए,चहरे पर गहरी लकीरे,और मन में हीनता की भावना|आज मजदूर दिवस,हम धूम धाम से मनाएंगे|उसे छुट्टी देकर,अच्छा सा केक खीलायेंगे|आज कोई काम नहीं करने देंगे,न

बिन तुम्हें बताए, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारा नाम लिए, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हें देखे, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारे क़रीब रहकर, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारी आवाज़ सुने, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारी नज़रों में डूबे, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारे दिल में समाए, मोह

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सावन के बादल उमड़ -घुमड़ इतनी करते मन-मयूर नाच उठता कदम हैं थिरकते। धरती का आंचल हर दिशा हरा-भरा कर देते।  कृषक,साहुकार,जन-सामान्य फलते-फूलते। नदी,तालाब,सिंधु,पोखर सब उमगते जीव-जंतु खुशहाल विचरते दिखते। बाल-वृन्द,नौजवान वृद्ध सब विहसते अपनी-अपनी तरह से खूब आनंद लेते। प्रकृति के रंग क्या अदभुत नित सवंर

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