तुलसी पूजा का महत्व सातवां माह कार्तिक एक पवित्र माह के रूप में माना गया है। कहते हैं कि इस महीने में भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं जो इस वजह से इस महीने का पौराणिक महत्व बहुत खास माना
शालीग्राम सुनो विनती मेरी | यह वरदान दयाकर पाऊं || प्रातः समय उठी मंजन करके | प्रेम सहित स्नान कराऊं || चन्दन धूप दीप तुलसीदल | वरण -
आरता खोली वाले का, कृष्ण के अवतारी का । मोहन मुरली वाले का , नृसिंह अवतारी का । । आरता बंशी वाले का ...........(१) धन्ना जाट तेरी धन्य कमाई , जिसने प्रीति हरि संग लायी । एक मन होकर नाम रटाई , हु
ओम जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता, आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता... रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता, ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता... विष्णु सेव
आरती श्री जनक दुलारी की | सीता जी रघुवर प्यारी की || जगत जननी जग की विस्तारिणी, नित्य सत्य साकेत विहारिणी, परम दयामयी दिनोधारिणी, सीता मैया भक्तन हितकारी की || आरती श्री जनक दुलारी की | सीत
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति । तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥ मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को । उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥ कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै। रक्त
ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण, श्री राधा कृष्णाय नमः | घूम घुमारो घामर सोहे जय श्री राधा, पट पीताम्बर मुनि मन मोहे जय श्री कृष्ण | जुगल प्रेम रस झम-झम झमकै, श्री राधा कृष्णाय नमः | राधा राध
ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा । त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा ॥ ॐ जय गंगाधर … कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने । गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने ॥ ॐ जय गंगाधर … कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललित
सूत जी बोले: हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था। भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता
एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होग
ॐ जय हनुमत वीरा, स्वामी जय हनुमत वीरा । संकट मोचन स्वामी, तुम हो रनधीरा ॥ ॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥ पवन पुत्र अंजनी सूत, महिमा अति भारी । दुःख दरिद्र मिटाओ, संकट सब हारी ॥ ॥ ॐ जय हनुमत वीरा..॥
॥ हनुमानाष्टक ॥ बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों । ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो । देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो । को नहीं जानत है
जय भगवद् गीते, जय भगवद् गीते । हरि-हिय-कमल-विहारिणि, सुन्दर सुपुनीते ॥ कर्म-सुमर्म-प्रकाशिनि, कामासक्तिहरा । तत्त्वज्ञान-विकाशिनि, विद्या ब्रह्म परा ॥ ॥ जय भगवद् गीते...॥ निश्चल-भक्ति-विधाय
हे यज्ञ देवता नमस्कार है महिमा तेरी अति अपार, है….. जय वायु शुद्ध करने वाले, भक्तों का दुःख हरने वाले। सुख शांति धन वैभव आदी, भक्तों के घर भरने वाले।। है नमन हमारा बार-बार। . यज्ञों से हो पवित्र
पूजनीय प्रभु हमारे, भाव उज्जवल कीजिये । छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ॥ वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें । हर्ष में हो मग्न सारे, शोक-सागर से तरें ॥ अश्व्मेधादिक रचायें,
दोहा जय माँ चंडी चंडिका, चामुंडा शक्ति स्वरूप । प्रचंड हुई प्रचंडी माँ , धार ज्योति का रूप ।। ब्रह्मां की ब्रह्माणी माँ , विष्णु की लक्ष्मी मात । चंडी काली गौरी माँ , हो रहती शिव के साथ।। चोपाई
दीपावली के तुरंत बाद आने वाली गोवर्धन पूजा में गाई जाने वाली प्रमुख आरती। श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ। ॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥ तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े, तोप
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं, हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं । आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं, श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ मोर मुकुट प्यारे शीश पे सोहे, प्यारी बंसी मेरो
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा । जय काली और गौर देवी कृत सेवा ॥ ॥ जय भैरव देवा...॥ तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक । भक्तो के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥ ॥ जय भैरव देवा...॥ वाहन श्वान विर
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा । दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी । रजत सिंहासन राजत, ज्योति तेरी न्यारी । दीन दयाल दयानिधि, भव बन्धन हारी । जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे । सकल मनोरथ दायक,