रोज इंतेज़ार करते है, तुम्हारे इन अलफाजों का,शोर मच जाता है,इस खामोशी के आलम में,जब आगाज़ होता है, इन अलफाजों का।
अल्फ़ाज़ तेरे कहीं खो ना जाए, जल्दी से समेट ले ,कहीं देर ना हो जाए।पिरों दे माला में इन्हे,कहीं भटक ना जाए।वक़्त बहुत है कम,कहीं ये फिसल ना जाए।इबारत का रास्ता है कठिन,कहीं अटक ना जाए।मंजिल पे पहुंचा जल्दी इन्हें,कहीं देर ना हो जाए। अल्फ़ाज़ तेरे कहीं खो ना जाए।