फेस बुक की मेहरबानी से दो रोज़ पहले मेरा बर्थ डे न चाहते हुए भी जैसे तैसे मन ही गया । न चाहते हुए इसलिए क्योंकि बचपन में ही मेरे दिंवगत दादा जी ने 'जन्मदिन मसले' पर ऐसा फ़लसफ़े से लबरेज़ भाषण दिया कि ताउम्र के लिए मुझे जन्मदिन मनाने से गुरेज हो गया । हुआ यूँ गाँव में एक पंजाबी शरणार्थी परिवार आकर बसा औ