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बतकही

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बहुत कुछ उमड़ता है भीतर...कभी कह पाते हैं कभी नहीं! अनकहा बहुत कुछ संचित होता रहता है दिल में और

"चौराहे की बतकही"झिनकू भैया अपने गाँव के एक मध्यम किसान हैं, अच्छी खेती करते हैं, प्रति वर्ष करीब चार लाख का गल्ला, नजदीकी सरकारी खरीद केंद्र पर बिक्री कर देते हैं। कुछ सरकारी अनुदान इत्यादि भी मिल ही जाता है। अभी अभी कृषि कानून जो सरकार ने दोनों सदनों से पारित किया है उससे वे संतुष्ट भी हैं। कर्मठी

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