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बेखुद

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हाँ मत करो बात मुझसेतुम्हारी मर्जी।अपनो को क्या देना पडेबार-बार माफी की अर्जी।हाँ मानता हूं मैं हो जाती है गलतिया अक्सरइंसान है हम खुदा तो नहीं।जरा सी बात पर इतने दिन तक रूठे रहनाऐसी भी क्या हो खुदगर्जी।हाँ मत करो बात मुझसेतुम्हारी मर्जी।एक पल में ही भूल गएतुम वो सारी बातेंवो कसमे-वादेवो सब मुलाकाते

ज़िन्दगी कुछ ही दिनों की मेहमान होती हैहर इंसान की आखिरी मंज़िल श्मशान होती है परिंदो के परो को क्यों मिसाल दी जाती है जबकि परो से नहीं हौंसलो से उड़ान होती है मेरे सपनो का हिन्दोस्तान है कुछ ऐसा की जहाँ इंसानियत सबका धर्म सबकी शान होती है ना जाने क्यू लोग धर्म बनाते है बांटने के

खुद में खोकर खुद को पाना काम ज़रा सा भारी हैं जिन नज़रो में देखी है हमनेसूरत अपनी वह नज़र तुम्हारी हैसारे ग़मो को हर देती है जो पल मेंकुछ ऐसी मुस्कान तुम्हारी है आँख मेरी लगने ही नहीं देती यादे तेरीक्या मेरी नींद भी अब तुम्हारी हैतुझको ही सोचू और तुझको ही

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