shabd-logo

भूख

hindi articles, stories and books related to bhuk


भूख सयानों को भी दीवाना बना देती है। भूख की मार तलवार से भी तेज होती है।। भूखा कुत्‍ता डंडे की मार से नहीं डरता है। भूखा आदमी कौन-सा पाप नहीं करता है।। भूखा गधा हर तरह की घास खा जाता है। भूख

प्रेम की भूखविजय कुमार तिवारीसभी प्रेम के भूखे हैं।सभी को प्रेम चाहिए।दुखद यह है कि कोई प्रेम देना नहीं चाहता।सभी को प्रेम बिना शर्त चाहिए परन्तु प्रेम देते समय लोग नाना शर्ते लगाते हैं।प्रेम में स्वार्थ हो तो वह प्रेम नहीं है।हम सभी स्वार्थ के साथ प्रेम करते हैं।प्रेम कर

भूख जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, देखती नहीं है रोटी बेईमानी की है या ईमानदारी की, ये कम्बख्त भूख चीज़ ही ऐसी है जो मिटती ही नहीं है, रोज़ दर रोज़ बढ़ती जाती है. (आलिम)

featured image

हॉकी के मैदान पर गोल दागने वाले नेशनल खिलाड़ी तारा सिंह का नया पता है अंबाला रेलवे स्टेशन। रेलवे में खेल कोटे से उन्हें मुलाजिम होना था पर वे कुली बनने को मजबूर  नई दिल्लीः अंबाला रेलवे स्टेशन पर अगर कोई नौजवान कुली आपसे मिले और पूछे कि बाबूजी कहां सामान ले चलना है तो जरा उसका नाम जरूर पूछ लीजिएगा।

featured image

भूखों को भूख सहने की आदत धीरे - धीरे *भूखे को भूख, खाए को खाजा...!!भूखे को भूख सहने की आदत धीरे - धीरे पड़ ही जाती है। वहीं पांत में बैठ  जी भर कर जीमने के बाद स्वादिष्ट मिठाइयों का अपना ही मजा है। शायद सरकारें कुछ ऐसा ही सोचती है। इसीलिए तेल वाले सिरों पर और ज्यादा तेल चुपड़ते जाने का सिलसिला लगाता

मेरी याद दिल से भुलाओगे  कैसे,गिराकर नज़र से उठाओगे कैसे|सुलगने ना दो ज़िन्दगी को ज्यादा,चिरागों से घर को बचाओगे  कैसे  

उसका नाम है रामदीन. वह भी ''योगासन'' करना चाहता है पर अभी वह ''भूख-आसन'' का शिकार है. उसे देख कर यह कविता बनी  -भूखे को रोटी भी दे दो,फिर सिखलाना योग .बड़ा रोग है एक गरीबी, चलो भगाएं रोग.खा-पीकर कुछ अघा गए हैं, अब सेहत की चिंता जो भूखे हैं उन लोगो को कौन यहां पर गिनता। पहले महंगाई से निबटो, भ्रष्टाचा

पप्पू बुरी तरह घबरा गया था, हड़बड़ी मैं किसी और का आर्डर मिस्टर बवेजा को दे आया था, बवेजा का गुस्सा वो पहले देख चुका था, नमक कम होने पर ही वो कई बार खाना फ़ेंक चुका था, कंपकंपाता वो डाबा मालिक रामलाल के पीछे जाकर खड़ा हो गया, राम लाल ने उसे इसतरह खड़ा देखा तो डाँटते हुए बोला अबे ओये पप्या यहाँ खड़ा-खड़

किसान चिंतित हैसुशील शर्माकिसान चिंतित है फसल की प्यास से ।किसान चिंतित है टूटते दरकते विश्वास से।किसान चिंतित है पसीने से तर बतर शरीरों से।किसान चिंतित है जहर बुझी तकरीरों से।किसान चिंतित है खाट पर कराहती माँ की खांसी से ।किसान चिंतित है पेड़ पर लटकती अपनी फांसी से।किसान चिंतित है मंडी में लूटते लुट

रोटी की सही कीमत जानता है ,भूख से बिलबिलाता बदहाल बेसहारा बच्चा ,ढूंढ रहा है जो होटल के पास पड़ी झूठन में रोटी के चन्द टुकड़े,जिन्हें खाकर बुझा सके वो अपने उदर की आग को ,जिसकी तपन से झुलस रहा है उसका कोमल, कुपोषित ,कमजोर बदन |झपट पड़ा था जो फैंकी गयी झूठन पर उस कुते से प

featured image

भूख प्यास मजबूरी का आलम देखा,जब से होश संभाला केवल ग़म देखा। नहीं मिला ठहराव भटकते क़दमों को,जिसके भी मन में झाँका बेदम देखा। वादों और विवादों की तक़रीर सुनी,जख्मीं होंठों पर सूखा मरहम देखा। बिना किये बरसात बदरिया चली गई, कई मर्तबा ऐसा भी मौसम देखा। सर पे छप्पर नहीं मह्ज नीला अम्बर था,उन आंखों में स्वा

बारिश भिगाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैगर्मी भी सताती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैसर्दी कंपकंपाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैमौसम से अमीरी ही डरी, गरीबी को डर बस भूख का हैकोई सत्ता में आया,छाया गरीबी को डर बस भूख का हैकिसी ने सिंहासन गवांया गरीबी को डर बस भूख का हैव्यस्त सब सियासी खेल

गिरिजा नंद झाहालांकि, इस तथ्य को जानने में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सामान्य ज्ञान बढ़ाना हो तो इस पर एक नज़र डालने में कोई हजऱ् नहीं है। बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और इसीलिए इसे याद रखने के लिए बहुत ज़्यादा माथापच्ची भी नहीं करनी होगी। तथ्य यह है कि मौत अब तक का आखिरी सच है और इस सच क

भूख में होती है कितनी लाचारी,ये दिखाने के लिए एक भिखारी, लॉन की घास खाने लगा,घर की मालकिन में दया जगाने लगा।दया सचमुच जागीमालकिन आई भागी-भागी-क्या करते हो भैया ?भिखारी बोलाभूख लगी है मैया।अपने आपको मरने से बचा रहा हूं, इसलिए घास चबा रहा हूं।मैया ने आवाज़ में मिसरी घोली,और ममतामयी स्वर में बोली— मेर

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए