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फ़ौज़

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दिगपाल, मेरे बचपन का साथी था, दोस्त था या यूँ कहे कि वो मेरा मुण्डू(बेबी सिटर) था. दरअसल दिगपाल हमारी मौसी का नौकर था, उसकी उम्र कितनी थी मैं नहीं जानता पर शायद 12 या 14 साल का रहा होगा. पहाड़ी था या नेपाली ये भी मुझे नहीं पता

आओ चलो अब हम मरने चलें,जीवन में अपने कुछ करने चलें। हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला ,हर घडी घटनाओं का अम्बर काला। बलात्कार,खून,रंजिश,डकैती ;दुश्मन ही नहीं अब भाइयों में भी होती। नेताओं में ईमान था भला कहाँ;कहो पहले भी कब सहज-सुलभ रहा। अब तो वो नंगई में उतारू हो रहे;सत्ता की खातिर सारे कुकर्म कर रहे। यह

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