एक इंतकाम लगा उसके दिल में। मिटाने की चाहत लगा उसके दिल में।। भिगाना भी चाहे तो कैसे भिगाए। ना छुता कोई वहम मेरे दिल में।। बुझाना भी चाहे तो कैसे बुझाए। अनगिनत चिंगारी लगा मेरे
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤ हर एक अल्फाज पे जीना आ गया । मिली तारीख तो महीना आ गया । ऐसा नशा है यारो इस सत्संग में, ध्यान की मधुशाला में पीना आ गया । 🕔🕔🕔🕣🕣🕣🕣🕣🕣🕣 हर एक पर्वत झील पे तेर
मै बेखबर मूरत, आग का तपा हूँ। घर है माना शीशे का, पत्थरो से वाकिफ़ हूँ । तंग गलियारो में, सच्चाई की तरंग हूँ । सत्य पर लग सके, वो दफा हूँ । टूटते रिश
तेरे शहर से वो जल्दी ऊब गया, चकाचौंध से जी घबराया होगा। कोई उसने डाक्टरी इलाज नही की, पीपल की छाँव याद आया होगा। पूरे बच्चे में सीख दिखाई नहीं देती, चावल के एक ही दाने से
तोए-मोए के प्रीत 'गजल' पल भर में परिंदा उठकर, बदल जाता है पर्वत में। आगे कुआं, पीछे समंदर, हसीन नजारा दिखाता है... पनघट में। कृति- चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'
मैरी क्रिसमस 'गजल' मैरी क्रिसमस, मैरी क्रिसमस, इस बार भी अच्छा... आना। देकर मुझको अनमोल उपहार, पल-भर में छू-मंतर मत हो जाना। चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'
उड़न-छू 'गजल' जो गया है आसमां में, उसकी उम्मीद नहीं है आने की। हाथों की लकीरें नहीं बदली, तकदीर बदल गई है जमाने की।
दिल उसकी राह में , जो घर से चली भी नहीदोस्ती, मशवरा भूल जा, वो मेरे दिल से गई भी नहीउसको पाने की जिद में, तमाशा हुआ ,जो मुकद्दर&
आ तू भी आ ये सफर आखिरीहमारे ख्यालों का, वो नगर आखिरआओ जरा हम तुम्हे देख लें,दिन की घड़ी का, ये पहर आखिरी चले जाएंगे हम,&nbs
#जय_बुंदेली_साहित्य_समूह #टीकमगढ़ #ग़ज़ल- राना सवाल रखता है-* उसी से रिश्ता बनाते जो माल रखता है। जहां में कौन किसी का ख्याल रखता है।। मतदाता भी लाचार है और लालची। चुनाव में तो वो, वादों का जाल रखता ह
04 जब लड़ती थीं दो आवाजें तेरी नज़र
02 परोस दे मुझे हंसी गरम-गरम हवा गरम, फि़जा़ गरम , दयार भी गरम-गरम
05 नहीं तो शायरी समझो गई अब पुराने ख़्याल की जादूगरी समझो गई&nb
01 मैं कच्चा इश्क हूं कभी रहता हूं मैं तन्हा , कभी
तू मेरी दुआओं में रही कश्मीर- ऐ- हिंदुस्तान की तरहहम नाकाम हुये तेरे इश्क में पाकिस्तान की तरह।
ग़ज़ल वो चांद है जुगनू है सितारा तो नहीं है। जो कुछ भी है वो शख्स हमारा तो नहीं है।। तू भी तो बिछड़ कर नहीं रह पायेगा ज़िन्दा। मेरा भी बिना तेरे गुज़ारा तो नहीं है।। होठों पे
नहीं शक कि तुम हो मुहब्बत हमारी। मुहब्बत से बढ़कर हो आदत हमारी।।हवा की ज़रूरत है सांसों को जैसे। इसी तरह तुम हो ज़रूरत हमारी।।लकीरों में हाथों की चेहरा तुम्हारा। तुम्ही से है मंसूब किसम
उसकी दुआ लगने में कुछ वक्त लगेगा,सितारों को हक में आने में वक्त लगेगा,कई सारे मसले हैं मुझे जिंदगी तुझसे,उन्हें सुलझाने में कुछ वक्त लगेगा,जाने किधर गया वो खुशगवार सा वक्त,अब उस वक्त को लाने में कुछ
ये सच है कि पाँवों ने बहुत कष्ट उठाए पर पाँवों किसी तरह से राहों पे तो आए हाथों में अंगारों को लिए सोच रहा था कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए जैसे किसी बच्चे को खिलोने न मिले हों फिरता हूँ कई
एक कबूतर चिठ्ठी ले कर पहली—पहली बार उड़ा मौसम एक गुलेल लिये था पट—से नीचे आन गिरा बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे काँटे तेज़ हवा हमने घर बैठे—बैठे ही सारा मंज़र देख किया चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छ