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गरीबी

hindi articles, stories and books related to garibi


भारत -   मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द  जहां कहीं भी प्रयोग किया जाए  बाकी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं  इस शब्द के अर्थ  खेतों के उन बेटों में हैं  जो आज भी वृक्षों की परछाइयों से  वक्त मापत

सदियों से चली आ रही लैंगिक असमानता एक परम्परा की तरह आज भी हमारे समाज में सहजता से देखने को मिल जाती है।  आज भी सामान्य समाज में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो घर-परिवार वाले उसकी ख़ुशी में जो कार्यक

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पटरा पे चदरा बिछाय जालें सुती ।खाए के नून भात मरचा आ रोटी ।जिनिगी गरीब के अस होरहा भुजाता ।त रामे क बरखा ह रामे क छाता ।।मजूरे क देह मेह मारेला तान के ।सेतिहा क हइये बा जांगर किसान के ।पांजर में कांकर

अगर भूख बाजारों में बिकती,तो रोटियां केवल अमीरों के घर सिकती।अगर प्यास भी बिकती बंद बोतलों में,तो यह भी होता अमीरों के एक चोंचलों में।अगर नींदो का भी होता व्यापार,तो बिस्तर नही बिछते गरीबों के द्वार।अ

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कल दिनांक 29 जून को "पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक"(पीपीआई डी) के कार्यकर्ताओं की टीम,पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आर के विद्यार्थी के नेतृत्व में ग्राम सभा भीटा ब्लॉक जसरा जिला प्रयागराज मे जनसंपर्क किया! जनसंपर्क के दौरान यह बात निकल कर के आई कि गांव के मनरेगा के मजदूरों को उनकी मेहनत का आधा पै

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घायल मेरे मन की आशा मन में व्याप्त भरी निराशा क्यों चुप है सत्ता में बैठी सरकारेंनहीं सुनाई देती क्या निर्धनों के चीख पुकारे। हर बार बात तो करते हैं ये अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी लेकिन के यह क्या जाने इनकी बातों से नहीं होगा कुछ निर्धनों

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जूठे बर्तन साफ़ करती वह,दूध के बर्तन की चिकनाई चेहरे पर मलतीहै।कपड़ों के मैले बचे सर्फ़ में पैर डालउन्हें रगड़ती है, धोती है।झाड़ू लगाते समयआईने में स्वयं को निहारतीचुपके सेमुँह पर क्रीम या पाऊडर लगामंद मंद मु

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आज हम आज़ादी का मजा लेते हुए अपने घरों में बड़े-बड़े मुद्दों को बड़ी आसानी से बहस में उड़ा देते है, लेकिन कभी सोचा है कि जिन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए देश को आज़ाद कराया, उनमें से जो जिंदा हैं, वो किस हाल में हैं ?ये हैं झाँसी के रहने वाले श्रीपत जी, 93 साल से भी ज्यादा की उम्र पार कर चुके श्रीप

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हर माँ-बाप अपने बच्चों के लिए कोई न कोई सपना ज़रूर देखते हैं कोई चाहता हैं उनका बच्चा डॉक्टर बने तो किसी का ख्वाब होता है कि उनका बच्चा इंजीनियर बने लेकिन आपको ये बात सुनकर थोड़ी हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले में नगला दरबारी नाम का एक गांव है, जहां माता-पिता बच्चों को इंजीनियर या डॉक्टर

आज एक चित्र देखा मासूम फटेहाल भाई-बहन किसी आसन्न आशंका से डरे हुए हैं और बहन अपने भाई की गोद में उसके चीथड़े

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शर्मा जी अभी-अभी रेलवे स्टेशन पर पहुँचे ही थे। शर्मा जी पेशे से मुंबई मे रेलवे मे ही स्टेशन मास्टर थे। गर्मी की छुट्टी चल रही थी इसलिए वह शिमला घूमने जा रहे थे, उनके साथ उनकी धर्मपत्नी मंजू और बेटी प्रतीक्षा भी थी। ट्रेन के आने मे अभी समय था।तभी सामने एक महिला अपने पाँच स

“गरीबी” गरीबी एक शूल की तरह पली बढ़ी चढ़ती गई व प्राण हरती गई उतरी तो धमनियों से रक्त निचोड़ गई जब सुस्त हुई तो तगड़े व स्वस्थ नौजवान को भी पस्त कर गई गरीबी गरीब कर गई॥ गरीबी लता की तरह बढ़ी उपजाऊँ जमीन पर उगी पर किसी दरख्त तक न पहुँच पाई जमीन प

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कफन खरीदने के लिए पैसे मांगे. फिर पति की लाश को श्मशान ले गई. खुद से अपना सिंदूर धोया और अपने पति को मुखाग्मी दी। पटना: आम तौर पर जब किसी महिला के पति की मौत हो जाती है तो वो टूट जाती है. लेकिन आर्थिक तंगी और खुद की औलाद से मिले धोखे ने उसे एक मिनट के लिए भी पति के मरने पर टूटने नहीं दिया. उसने पहले

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कहानी------------समय का मोल...!!अमितेश कुमार ओझाकड़ाके की ठंड में झोपड़ी के पास रिक्शे की खड़खड़ाहट से भोला की पत्नी और बेटा चौंक उठे। अनायास ही उन्हें कुछ  प्रतिकूलता का भान हुआ। क्योंकि भोला को और देर से घर पहुंचना था। लेकिन अपेक्षा से काफी पहले ही वह घर लौट आया था। जरूर कुछ गड़बड़ हुई.... भोला की

बारिश भिगाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैगर्मी भी सताती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैसर्दी कंपकंपाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैमौसम से अमीरी ही डरी, गरीबी को डर बस भूख का हैकोई सत्ता में आया,छाया गरीबी को डर बस भूख का हैकिसी ने सिंहासन गवांया गरीबी को डर बस भूख का हैव्यस्त सब सियासी खेल

गिरिजा नंद झाहालांकि, इस तथ्य को जानने में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सामान्य ज्ञान बढ़ाना हो तो इस पर एक नज़र डालने में कोई हजऱ् नहीं है। बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और इसीलिए इसे याद रखने के लिए बहुत ज़्यादा माथापच्ची भी नहीं करनी होगी। तथ्य यह है कि मौत अब तक का आखिरी सच है और इस सच क

सिर को पकडे हुये अपनी बर्बाद फसल को कातर निगाहों से देखते हुये मैंने एक किसान से कहा कि चल उठ मन की बात ही सुन ले सुकून मिलेगा।  वह उठा और अपने मन की जो सुनायी वह बयान करता हूँ----  बोला " कहाँ जाऊँ मैं अपनी यह बर्बाद फसल लेकर; सोचता हूँ मर जाऊँ इसी आम के पेड़ पर लटक कर;  घर जाऊँ कैसे? मेरी बूढी माँ

एक युवक जो कि एक विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था, एक दिन शाम के समय एक प्रोफ़ेसर साहब के साथ टहलने निकला हुआ था। यह प्रोफ़ेसर साहब सभी विद्यार्थियों के चहेते थे और विद्यार्थी भी उनकी दयालुता के कारण उनका बहुत आदर करते थे। टहलते- टहलते वह विद्यार्थी प्रोफ़ेसर साहब के साथ काफ़ी दूर तक निकल गया और तभी उ

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