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gazal

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तेरे ग़म उठाने के लिए जिये जा रहा हूँ,तेरे दिए इन ज़ख्मों को सिये जा रहा हूँ,यूँ तो ऐ ज़िंदगी तुझसे शिकवे थे हज़ारों,फ़िर भी मैं जीने का मज़ा लिये जा रहा हूँ।           

मेरे दिल में अभी भी है, लेकिन किस्मत से निकल गयी है, कल राह में मिला था उससे, वो कितनी बदल गयी है.उसके हाथों में चुड़ियाँ, और मांग में सिंदूर देखकर, मेरी आँखें फटी की फटी रही,

सर्दी की जद में फिर जमाना है हमको अब फिर से दिल लगाना है हम ही पत्थर है वो उघड़ खाबड़, जिसको नाज़ुक सा दिल बनाना है

दिल की तो आप बख्श दे जाॅं आखों को आप भा रहीं हैं दिल धड़कना भी छोड़ दे क्या आप क्यो पास आ रहीं हैं

ढल गई हुस्न-ए-बारात अब पूछे कौन उसके हालात अब सबसे हॅंस-हॅंस के करती हो हमसे करतींं नहीं बात अब

दिल लगाने तक की बात थी सांस दूसरे के हाथ थी इश्क उम्र भर तो चल गया साल ख़ांड़‌ और बात थी

सुनो मात राधा सुनो मात राधा बिना कृष्ण तेरे हैं वो आध राधा दिवाने है हम भी तिरी जैसे मैया दिवानी हो जैसे तिरी मीर राधा

गिरता - फिरता पटरी पे आ जाता है भौंरा खुलती कलगी पे आ जाता है क्या करें हम इस भटकते दिल का भी हर टहलती तितली पे आ जाता है

उसने वो बात नही की हमसे बात हम कह जो नही पाते हैं वह तो सोता है किसी बाहों में हम यहाॅं क्यूॅं सो नहीं पाते हैं

उस ने फिर से कसम अपनी भी तोड़ दी उस ने सच्ची कसम खानी ही छोड़ दी हाथ उसने मिलाया हमे फिर से जब उसने उँगली ‌ भी फिर से वही मोड़ दी

तेरी जब बात आती है बस तिरी बात आती है थोड़ से और बैठो तो बस ‌अभी‌ ग्लास आती है

बिना मय के शराबी भी रहे थे हम ये आख़िर कौन सी मय पी रहे थे हम तुम्हे ये जान कर हैरानी तो होगी बिना कैसे तुम्हारे जी रहे थे हम

ये गम भी क्या कम है जानाॅं तुम तुम हो हम हम है जानाॅं जी हम इक करले दोनो का सीने में जी कम है जानाॅं

एक हॅंसी नाम जोड़े जा रहे हैं हम भी आहिस्ता से छोड़े़ जा रहे हैं ये भी आख़िर कैसी मोहब्बत है जानाॅं लोग है के फूल तोड़े जा रहे हैं

जब हमारा नही कोई मसला नही थीं बहुत पास वो दिल भी धड़का नही

मुसाफ़िर तो रस्ता समझ बैठते है नए कुछ खज़ाना समझ बैठते है यहाॅं कोई भी तो नही है हमारा हमीं सबको अपना समझ बैठते है

मोहब्बत इतनी है तुमको मोहब्बत से मोहब्बत छेड़ते जाओ मोहब्बत से दिलो को तोड़ना ही है मोहब्बत क्या दिलो को तोड़ते जाओ मोहब्बत से

हमीं दिल ये अपना जला बैठते हैं खुदी और देने हवा बैठते हैं नदी के किनारे कहीं बैठ करके नई इक नदी हम बहा बैठते हैं

फूल थोड़े से सुहाने देखती हैं तितली भी सपनो के दाने फेंकती हैं खेलते हैं लोग दिल से, साथ उसके सब दिलो के साथ में जो खेलती हैं

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