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hindi_kavita

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दबी जुबां में सही अपनी बात कहो,सहते तो सब हैं......इसमें क्या नई बात भला!जो दिन निकला है...हमेशा है ढला!बड़ा बोझ सीने के पास रखते हो,शहर के पेड़ से उदास लगते हो...पलों को उड़ने दो उन्हें न रखना तोलकर,लौट आयें जो परिंदों को यूँ ही रखना खोलक

कविता जो दिल को छू जाये पंछी क्या सोचे वो क्या जाने, पंछी बन जो उड़ना ना जाने. नहीं कल को सोच पछताना, क्या होगा सोच ना घबराना. सोने का पिंजरा पसंद नहीं, पेड़ों पर जाकर सो जाना. दाना-पानी का व्यापार नहीं, सोने-चांदी की भी चाह नहीं. जो है सब तेरा - मेरा है,

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इस जिहादी ममता को आपका क्या जवाब है ? इस जिहादी ममता को आपका क्या जवाब है ?

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