इंसान की कीमत दूनिया में कुछ भी तो नहीं रह गई है, इंसानियत की लत स्वार्थ के सैलाब में कहीं बह गई है. किसी को किसी के दर्द से कोई पीड़ा नहीं होती यहां, अपना अपना राग अपनी अपनी डफली ही रह गई है, झूठ और बेईमानी का जाल फैल चुका है चारों तरफ, सच्चाई और ईमानदारी की इमारत तो
बिन दर्द ली दवा ज़हर होती है, दर्द में पिया ज़हर दवा होता है. सियासत में हर चाल मुनासिब है, ईमान तो हर रोज़ बिका करता है.(आलिम)