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पढ़े-लिखों की चालाकी से फूट गई तकदीरढाई आखर की बुनियादें हिलने लगीं कबीरमिल-जुल कर कैसे रहना है दुनिया भूल गई हैतुमने देखा नहीं मदरसा ये स्कूल गई हैखून की होली तोड़ रही है रिश्तों की जंजीरतुम परवाह कहां करते थे, कितना बोल गए थेदाढ़ी-चोटी जंतर-मंतर, सब कुछ खोल गए थेअक्षर-अक्षर सत्य तुम्हारा, मिलती नह

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