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कल

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न छेड़ो प्रकृति को आज भी हवाए अपने इशारे से बादलो को मोड़ लाती हैं। गर्म सूरज को भी पर्दे की ओट मे लाकर एक ठंडा एहसास जगाती हैं। रात की ठंड मे छुपता चाँद कोहरे की पर्त मे, उस पर्त को भी ये उड़ा ले जाती हैं। प्रकृति आज भी अपने वजूद और जज़बातो को समझती हैं हर मौसम को।पर मानव उनसे कर खेलवाड़, अपने लिए ही मु

रोला- रोला छंद दोहा का उलटा होता है l विषम चरण में ग्यारह मात्रा एवं सम चरण में तेरह मात्रा के संयोग सेनिर्मित [११+१३=२४ मात्रिक ] लोकप्रिय रोला छंद है l रोला छंद में ११,१३ यति २४ मात्रिक छंद है दो क्रमागत चरण तुकांत होते हैं काव्य रम

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जीवन में घोर निराशा हो काले बादल जब मँडरायेंथक हार के जब हम बैठ गयेंकोई मन्जिल ना मिल पायेतब आती धीरे से चलतीछोटी -छोटी , हल्की-हल्की मैं आशा हुँ , तेरे कल की।। रात्री का विकट अंधेरा हो कुछ भी नजर ना

सादर नमन साहित्य के महान सपूत गोपाल दास ‘नीरज’ जी को। ॐ शांति। “चतुष्पदी”सुना था कल की नीरज नहीं रहे। अजी साहित्य के धीरज नहीं रहे। गोपाल कभी छोड़ते क्या दास को- रस छंद गीत के हीरज नहीं रहे॥महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

क्यूँ कल पर अपने रोता है क्यूँ कल में भागा करता है कल बीता ना बदलेगा ना कल पर तेरा वश है , सुनले मिला वक़्त बस आज का है खुशियाँ बाट , जी भर के जीलेकोई रंक हुआ है राजा शहजादे भी हुए फटीचर मिट्टी की ही पूजा

प्रेमचंद और स्त्री प्रेमचंद स्त्रियों को आधुनिक षिक्षा देने के विरोध थे और स्त्रियों की षिक्षा के सम्बंध में उनका दृस्टिकोण संकीर्णतावादी है,लेकिन यह भी स्पश्ट हैकि उनका विरोध पाष्चात्प नारी के आदर्ष को अपनाने के लिए प्रेरित करने वाली षिक्षा के प्रति है,मुझे खेेद है,हमारी

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