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कर्म

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तेइसवीं पुतली - धर्मवती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारीयों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा

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अन्न दाता,पेशा – खेती ,अन्न उगाताडॉ शोभा भारद्वाज एक हिस्से में महिलाएं लाल झंडा लेकर बैठी थी किसान आन्दोलन मेंमाओवादियों का प्रदर्शन क्यों ? एकमहिला स्टेज पर रूदाली बनी मातम जिसे पंजाब में स्यापा कहते हैं करती हुई बैन भररही थी ‘ह्य - ह्य मोदी मर जा तू’ मौलिक अधिकार में अभिव्यक्ति कीस्वतन्त्रता के अ

धर्म धर्म का उफान उठा है, मानव धर्म कोई ना निभाएं। चील, कव्वे, गिध, गधा, कुत्तों का नाम लेकर एक इंसान दूजे को कोसे, पर खुद के अंदर झांकने का इरादा ना पाए। बेटी पिता को बिठा साइकिल पर मीलों सफर कर, अपने गांव घर ले आए। पढ़ें लिखे लोगों के बीच भूख से व्याकुल हथिनी, खानें के नाम पर धोखा खाएं। कदमों के छ

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बुरे लोगों के साथ बुरा क्यों नहीं होता एक साधक ने एक यश प्रश्न किसी आचार्य के आगे रख दिया कि है आचार्य बुरे लोगों के साथ बुरा क्यों नहीं होता उन्हें उनके बुरे कर्मों की सजा क्यों नहीं मिलती अपितु अच्छे लोगों के साथ ही सदैव बुरा क्यों होता है।आचार्य दो मिनट मौन रहने

यदि आप सकारात्मक सोचेंगे तो आपके जिवन में भी सकारात्मक होगा। उदाहरण के लिए यदि आप गाडी से कहिंं जा रहे हो और तब अचानक से आपको एक्सिडेंट का ख्याल आता है, यहांं ध्यान देने वाली बात यह है कि आपने स्वयम ही एक्सिडेंट को अपने दिमाग में जगह दी इसलिए एक्सिडेंट होना तय है , इससे बचने के लिए अपने आसपास सकारात

कर्म करो तो फल मिलता है आज नहीं तो कल मिलता है जितना गहरा अधिक कुआँ हो उतना मीठा जल मिलता है जीवन के हर कठिन प्रश्न काजीवन से ही हल मिलता है

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*सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि मनुष्य जन्म लेने के बाद तीन प्रकार के ऋणों का ऋणी हो जाता है | ये तीन प्रकार के ऋण मनुष्य को उतारने ही पड़ते हैं जिन्हें देवऋण , ऋषिऋण एवं पितृऋण के नाम से जाना जाता है | सनातन धर्म की यह महानता रही है कि यदि मनुष्य के लिए कोई विधान बनाया है तो उससे निपटने या मुक्ति

इच्छाएं ना हो तो जीवन ठहर जाएगा, इच्छाएं ही हो तो जीवन ज़हर हो जाएगा. कृष्ण ने कहा कि मैंने मन बनाया है जो इच्छाओं के पीछे भागता है, मैंने बुद्धि दी जो इन इच्छाओं पर नियंत्रण कर सके और शरीर या देह दी है, जो किर्यान्वित कर सके.

गीता में कृष्ण ने कहा कि हे भारत (अर्जुन) ! जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब- तब ही मैं व्यक्त रूप में प्रकट होता हूँ. लेकिन वही गीता में अर्जुन से कहा है कि मैं इस सृष्टि का प्रयोजक हूँ इसलिए कर्मो से नहीं बंधता. कर्म से वो बंधते

सनातन धर्म में कर्म और धर्म दोनों की ही व्याख्या की गई है , पर तथाकथित हिन्दू इन दोनों ही शब्दों का अर्थ अपनी सुविधा के अनुकूल प्रयोग करते रहे है. सनातन धर्म की सुंदरता इसमें है कि उसमे सभी विचार समा जाते है. यही कारण है कि लोग

मुहूर्त का अर्थ है सही समय का चुनाव। किसी समय-विशेष में किया गया कोई कार्य शीघ्र सफल होता है तो कोई कार्य तरह-तरह के विघ्नों के कारण पूरा ही नहीं हो पाता! यहाँ प्रस्तुत है सही मुहूर्त चुनने की सरल विधि ----------------व्यक्ति की कुंडली यह जानकारी देती है कि व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्म के कारण

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जीवन राह देता है पर हम उसे पकड़ नही पाते हैं। अकर्मण्यता या आलस्य वश ऐसा होता है। भाग्य भी पुरुषार्थ से फलीभूत होता है। कर्म के योग से कुशलता प्राप्त होती है। कर्म की महत्ता सर्वोपरि है। बिना कर्म के कुछ नहीं मिलता है। ईश्वर आशीष से हमें जो यह अनमोल जीवन मिला है इसे सार्थक करने के लिए हमें कर्म को म

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