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कर्मयोग

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गीता– कर्मयोग अर्थात कर्म के लिए कर्म “गीता जैसा ग्रन्थ किसी को भी केवलमोक्ष की ही ओर कैसे ले जा सकता है ? आख़िर अर्जुन को युद्ध के लिये तैयार करनेवाली वाली गीता केवल मोक्ष की बात कैसे कर सकती है ? वास्तव में मूल गीता निवृत्तिप्रधान नहीं है | वह तो कर्म प्रधान है | गीता चिन्तन उन लोगों के लिये नहीं ह

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