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खुद

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दिल्ली कूच न करो, दिल्ली के सारे बॉर्डर सील करोजय जवान, जय किसान एक दूसरे के आमने सामने।पहले किसान बाप, बेटा जवान, हक में आमने सामने।बदल गई नज़ीरे, जो कभी मन में उमंग भरती रही।पहले के आंदोलनों से नेता निकले, आज आंदोलन नेता के लिए।देश जहाँ था वही है, और टुकड़ों में बट गया। इंसान की सोच पहले भी ज़हर उगला

दिल क्या चाहें, कोई समझे ना.. खुद खुशी करने से अच्छा है कि किसी की खुशियों को सजाया जाएं, खुद को मारने से बेहतर है कि किसी के साथ जी लिया जाए,, बेमायने ही सही.... खुद पर यूं एक एहसान कर लिया जाए, शायद वक्त परेशानियों का कुछ कट जाए। भटके मन को राह दिखाना आसान कहां है? पर हर हाल में चलना ही बेहतरीन है

बना के काहे पछतायो।काहे मनवा को तूने बनायो, बनाके काहे पछतायो।जहरीले नागन को बीन बजाकर पिटारे में फ़सयो।दौड़ते भागते जानवरो के मुख में लगाम लगायो।जंगल मे देने वाली दहाडो को पिंजरे में फ़सयो।विशाल काय शरीर वाले को अपनी सवारी बनायो।घास फूस पेड़ काट झोपड़ी, तरास पत्थर का महल बनायो।पढ़ लिखकर चला दिमाग और न जा

उनके लबों से निकला हर शब्द ग़ज़ल है,उनकी आंखों में रहता समंदर भी ग़ज़ल है,उनके गेसुओं पे कभी जो एक शब्द कह दूं,मेरे लिए तो वो एक हर्फ़ भी पूरी ग़ज़ल है।घटाएं बसती हैं उनकी जुल्फ की छाँव में,वो घटा अल्फाज में आ जाय वही ग़ज़ल है। उनके लबों से निकला हर लफ्ज़ ग़ज़ल है,उनकी तारीफ भी मेरे

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हम में से बहुत से (सही-सही) अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने, पूरे खाद्य पदार्थों को खाने और सक्रिय रहने की कोशिश करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं … हम ध्यान और वियोग के कुछ पल ले रहे हैं, उपकरणों से दूर।ये आत्म-देखभाल के अद्भुत कार्य हैं, और

खुद में खोकर खुद को पाना काम ज़रा सा भारी हैं जिन नज़रो में देखी है हमनेसूरत अपनी वह नज़र तुम्हारी हैसारे ग़मो को हर देती है जो पल मेंकुछ ऐसी मुस्कान तुम्हारी है आँख मेरी लगने ही नहीं देती यादे तेरीक्या मेरी नींद भी अब तुम्हारी हैतुझको ही सोचू और तुझको ही

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