कब तक मौन रहोगे विदुरों? जब सर ही कट जायेगा तो….!रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी डायरी में लिखा है कि मुझे एक शालीन कवि होने के नाते रक्त पीने जैसी बात शायद नहीं लिखनी चाहिए थी पर मैंने इसलिए लिख दी है ताकि आने वाले कल में इतिहास याद रखें कि जब सब सरकारी सरोकारी लोग मौन थे तो इस देश के एक कवि को इतना गुस
जो बड़ा बना,वह गया।कली से खिलकर फूल बनकरबिखर गया।कोपलों से खिलकर बन पत्ताबिखर गया।नन्हा सा पौधा बनकर पेड़,वह भी कट गया।गिरी जो बर्फ पहाड़ो कोढकने के लिए वह भी बह गई।जमीन से उठी पार्टी नेआसमान चूमने के कोशिश किया।वह भी सिमट गईं इस जहांमे।गरीबी से उठकर अमीरों कोजानने की कोशिश किया,हो हताश ज़िंदगी से मौत क