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मत

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काफिया- आ स्वर रदीफ़-नहीं यूँ ही वज्न- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ “गज़ल” बहाने मत बनाओ जी धुआँ उठता नहीं यूँ ही लगाकर आग बैठे घर जला करता नहीं यूँ हीयहाँ तक आ रहीं लपटें धधकता है वहाँ कोना तनिक जाकर शहर देखों किला जलता नहीं यूँ ही॥सुना है जल गई कितनी इमारत बंद कमरों की खिड़कियाँ रो

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