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मोच

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छोटी सोच हो या पैर की मोच, कभी आगे नहीं बढ़ने देती. जहां छोटी सोच के चलते नीयत डोलने में देर नहीं लगती,वहीं पैर की मोच अपाहिज बना देती है. बाकी बची दुनिया, जिसके पीछे पड़ जाए, तो ऐसे पड़ती है कि जैसे खुद दूध की धुली हो. किसी काम की सकारात्मक या नकारात्मक समीक्षा हो सकती है. लेकिन किसी के अस्तित्व को

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