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मुक्तक

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नव निर्माण उठ चेतन,भोर भई जाग मुसाफिर।नव चेतना उत्थान लिए,संकल्प जागृत जाग मुसाफिर।।नभ प्रकाशवान दीप प्रज्वलित,उठ जाग मुसाफिर भोर भई।नव आभामंडल रश्मि लिए,नव चेतना नव संकल्प भई।।अंतः ऊर्जा संचित कर,नव

मनभावन श्रावण पावस मास,शिव शंकर भोले बाबा का।दर्शन को आतुर भीर लगी,पावस मास शिव शंभु का।।मनभावन श्रावण पावस मास,बाघम्बर धारी शिव शंभु का।हाथों में सोहे त्रिशूल डमरू,सिर गंगे चंद्र त्रिकालदर्शी का।।मनभ

कागज़ का टुकड़ा जिस पर,कलम,स्याही, दवात का पहरा।शब्दों का प्रयोग जहां तक,मनस्थिति आंकलन का पहरा।।कागज़ का टुकड़ा जिस पर,लेखनी से विचार सजाते।भावों और विचारों का मंथन,प्रयासों से अपना लेखन सजाते।।कागज़

सुख और उम्र का तालमेल,आपस में कब बनता है।कैसे उम्र ये कटती रहती,सुख दुःख जीवन में रहता है।।सुख और समृद्धि जीवन में,शांति जीवन में लाती है।आशा और निराशा के बीच,भंवर में डोलती रहती है।।सुख कब मिलता जीवन

सुमिरन करो प्रभु को,लगे नश्वर जग संसार।माया मोह के छूटे बंधन,लगे नश्वर जग संसार।।जिंदगी है दो पल की,सिर्फ नाम प्रभु का लीजै।पार लगेगी नैया तुम्हरी,इक बार सुमिरन कर लीजै।।आया है रे तू मनवा,देखन तू

हे त्रिपुरारी नीलकंठ महादेव,जग हितकारी अविकारी प्रभु।नागपाश गले में साजे तुम्हरे,सिर पे गंगे और चंद्र प्रभु।।संग गौरा गणेश कार्तिकेय,पर्वत कैलाश विराजै प्रभु।आयो श्रावण मास पावन,पुष्प चरणों में अर्पित

रिमझिम रिमझिम बरसो रे,आयो सावन का महीना।सावन की फुहारें झिर-मिर,मनभावन सावन तिर- मिर।।रिमझिम रिमझिम बरसो रे,धरती भीगे तरुवर भीगे।बारिश की बूंदों से भीगे,त्रप्त धरा की माटी भीगे।।रिमझिम रिमझिम बरसो रे,

पथ के राही अग्रसर,सरल, सुगम पथ पर।पथिक राह सुगम्य,मंजिल पे हो अग्रसर।।पथ के राही अग्रसर,राह पथरीली कष्टमयी।लक्ष्य अब आसान नहीं,पथिक थकन मर्ममयी।।पथ के राही अग्रसर,चिंतन मनन लक्ष्य निर्धारित।राह पथरीली

न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क

ओस की बूंदें धरा पर,ऐसे पल्लवित होती हैं।कदम धरा पर पड़ते ही,तन मन स्फूर्ति भरती हैं।।ओस की बूंदें पंखुड़ीयों पर,पुष्प भी खिल उठता है।कोमल कोमल सी कोपलें,खुशबू से मन खिल उठता है।।आसमान से गिरी धरा पर,

रिमझिम है तो सावन गायब,बच्चे हैं तो बचपन गायब।क्या हो गई तासीर खुदाया,अपने है तो अपनापन गायब।।चक्रव्यूह रचना अपनों से सीखो,अपने ही अपनों को सिखाते।विश्वास न करना तुम कभी,अपने ही ये तुमको सिखाते।।संभाल

बारिश की बूंदें छोटी हो,लगातार बरसना लेकिन।नदियों का बहाव बन जाता,लगातार बरसना लेकिन।।बारिश की बूंदों से  जलस्तर,जलस्तर से बनती है नदिया।सैलाब उमड़ता इस कदर,सागर में मिलती है नदिया।।नदिया मिलती ह

मन दर्पण मंथन अभिव्यक्ति,विचारों का सुन्दर आलेखन।शब्द अनवरत मन मंथन,शब्दों का सुन्दर आलेखन।।स्वर सृजन लहरी मन मोह,होते आलोकित मन दर्पण में।मन व्यथा से दुखित आत्मन,अंतर्मन व्यथित मन दर्पण में।।मन आह्ला

न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क

है जीवन की रीत सदा,हंसने रोने की क्या बात।खुश हंस पड़े पल भर में,दुख में रोने की क्या बात।।है जीवन की रीत सदा,हंसो हंसा लो दो पल।जीवन मंत्र का सार यही,वक़्त को बांध लो दो पल।।है जीवन की रीत सदा,कभी न

हे त्रिपुरारी नीलकंठ महादेव,जग हितकारी अविकारी प्रभु।नागपाश गले में साजे तुम्हरे,सिर पे गंगे और चंद्र प्रभु।।संग गौरा गणेश कार्तिकेय,पर्वत कैलाश विराजै प्रभु।आयो श्रावण मास पावन,पुष्प चरणों में अर्पित

शब्दों की उड़ान असीमित,पंख पसार पंछी बन नभ में।उड़ते बादल छाए जमीं पर,मौसम बदले जैसे पल भर में।।शब्दों की उड़ान फुलवारी बन,महके गुलशन गुलशन में।खुशबू बन कर महकाए,पवन बयार चले उपवन में।।शब्दों की उड़ान

तर्ज  : कोई दीवाना कहता है  सावन की झमाझम ने आस दिल में जगाई है  कलियों की ठिठोली ने प्यास दिल में लगाई है  जवां मौसम सुनाता है गजल कोई मोहब्बत की हसीं ऋतु ओढ़कर चादर हरियाली की आई

मन रे तू उदास न हो,इस कश्ती पे सवार तू।पार लग ही जाएगी,नैया अपने किनारे की ओर।।उस रब पे भरोसा रख,रब से तू सवाल न कर।कश्ती न तेरी डूबने देगा,नैया अपने किनारे की ओर।।सब कुछ उसी पे निर्भर है,बंदे तू क्यो

बम बम भोले बाबा बोले,आया सावन का महीना।श्रृद्धा और सबूरी भक्तों,सावन का पावन महीना।।भक्तों के मन में बसे,कैसे पूजन अर्चन करूं।बेल पत्र और धतूरे से,जल तुझ पर अर्पण करूं।।बम बम भोले बाबा बोले,अंतर्मन वि

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