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नज़र

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मन मे कुछ और पहली हीनज़र मे दिया उसने धोखा।हम भी नकम थे उसीके गली मे,रख दियापान का खोखा।जब भीनिकलती वो अपनी गली से,नजरेलड़ाके वो, नज़रेचुराती वो।कभीइतराकर कभी मुस्कराकर,हमे वोजलाती, हमे वोजलाती।जाती कहाँथी? हमे न बताती,हम भी उसीकी यादों मे जलने लगे...पहली हीनज़र मे दिया

एक नज़र इधर भी आँख से नींद बनी,पेट से खेत बना,बच्चे से प्यार बना। जीवन साथी से जीना। क्या रखा हैं इस धनदौलत मे?ये तो हैं मानव के मन को गुमराह करने का बहाना।पूज लो माँ-बाप को जीससे बनी ये काया।क्यों फिरता हैं जग मे, बंदा तू मारा-मारा?दिल, दिमाग, मन चंचल, इससे सब कोई हारा।

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