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नीरज

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मुझे नींद की तलब नहीं, पर रातों को जागना अच्छा लगता है। मुझे नहीं मालूम वो मेरी किस्मत में है या नहीं, पर उसे खुदा से माँगना अच्छा लगता है। जाने मुझे हक है या नहीं, पर उसकी परवाह करना अच्छा लगता है। उसे प्यार करना सही है या नहीं, पर इस एहसास में जीना अच्छा लगता है। कभी हम साथ होंगे या नहीं, पर य

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सेना प्रमुख जनरल बिपीनरावत ने कहाहै कि यदिपाकिस्तान आतंकवाद को रोकताहै, तो सेना"नीरज चोपड़ा की तरहपेश आएगी"| एशियाई खेलों में ज्वेलिन थ्रो में स्वर्ण पदक विजेतानीरज चोपड़ा ने कांस्य विजेतापाकिस्तानी खिलाड़ी से हाथ मिलाया था। सेना प्रमुख ने सेनासे एशियाई खेलोंके पदक

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नीरज चोपड़ा ने इंडोनेशिया में एशियाई खेलों के 18 वें संस्करण में भारत के लिए आठ स्वर्ण पदक जीत लिया है | चोपड़ा 83.46 मीटर की फेंक के साथ शुरुआत से ही आत्मविश्वास से परिपूर्ण दिखे । उन्होंने तीसरे प्रय

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अपनी काव्यानुभूति और सरल भाषा द्वारा हिन्दी कविता को एक नया मोड़ देने वाले महाकवि डॉ. गोपालदास नीरज ने अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर एक ऐसी भविष्यवाणी की थी, जो सच साबित हो गई। अटलजी और गोपालदास जी अच्छे दोस्त हुआ करते थे। दोनों की मुलाकात कानपुर के डीएवी कॉलेज में पढ़ने के

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बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिएजिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिएरोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरहअब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिएअब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्माये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिएफूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गयाजीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिएछिनता हो जब

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2018 एशियाई खेलों में भारतीय टीम के लिए भालेदार नीरज चोपड़ा ध्वजवाहक होंगे। नीरज ने हाल ही में फिनलैंड में सावो खेलों में स्वर्ण पदक जीता है| शुक्रवार को नरेंद्र बत्रा ने इस खबर की पुष्टि की। भारतीय ओलंपिक संघ एशियाई खेलों में भारत से 524 सदस्यों का दल भेजेगा | इस दल

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भूषण स्टील लिमिटेड के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर नीरज सिंघल को सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) ने गुरुवा

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महाकवि गोपालदास नीरज के गीतों का कारवां सदा के लिए थम गयालाल बिहारी लाल (19 july,2018)हिंदी के महाकवि गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उ.प्र.के इटावा जिला केपुरावरी गांव में हुआ था। इनका बचपन काफी मुफलिसी में बिता । शुरु में गंगा मैयामें चढ़ाये जाने वाले 5 या 10 पैसे को नदी से एकत्र कर जीवन या

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ऐ भाई ज़रा देखके चलो ये कौन सा मुक़ाम है, फ़लक नहीं ज़मीं नहीं के शब नहीं सहर नहीं, के ग़म नहीं ख़ुशी नहीं कहाँ ये लेके आ गई हवा तेरे दयार की ||गुज़र रही है तुमपे क्या बनाके हमको दर-ब-दरये सोचकर उदास हूँ, ये सोचकर है चश्मे तरन चोट है ये फूल की, न है ख़लिश ये ख़ार की ||पता नहीं ऊप

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इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने मेंन पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में अपनी अंतिम सांस तक अपनी कविताओं से हम सब को आत्मविभोर करने वाले कवि गोपालदास नीरज का दिल्ली के एम्स में हुआ निधन । समाचार एजेंसी प

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