राजनीति में हर कोई जनता की सेवा करने आता है और फिर जनता का मालिक बन जाता है. यह कोई ऐसी बात नहीं जो कोई नहीं जानता हर कोई जानता है, पर या तो जान कर अनजान बना रहता है? या उसे लगता है कि हम जनता नहीं प्रजा है और वो राजा?
राजतंत्र से भारत ने सफर शुरू किया था और लोकतंत्र तक पहुँच गया था, क्या अब फिर से हम राजतंत्र की तरफ वापिस जा रहे है? बहुत से लोगो के ही नहीं सबके मन में यह विचार ज़रूर उठेगा कि अब वापिस राजतंत्र का आना नामुमकिन है, राजतंत्र के बाद हम गुलामी की ओर