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सवैया

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वागीश्वरी (सात यगण+लघु गुरु) सरल मापनी --- 122/122/122/122/122/122/122/12, 23 वर्ण"वागीश्वरी सवैया"उठो जी सवेरे सवेरे उठो जी, उगी लालिमा को निहारो उठो।नहा लो अभी भाप पानी लिए है, बड़े आलसी हो विचारो उठो।कहानी पढ़ी है जुबानी सुनी है, सुहानी हवा है सँवारो उठो।दवा से भली है सुबा की जुगाली, चलाओ पगों को ह

महाभुजंगप्रयात सवैया ,,(8यगण ) 24वर्ण, सरल मापनी -- 122/122/122/122/122/122/122/122"महाभुजंगप्रयात सवैया"प्रभो का दिदारा मिला आज मोहीं, चली नाव मेरी मिली धार योंही।सभी मीत मेरे सभी साधनों का, सहारा मिला नाथ जी सार सोहीं।।न था को किनारा न कोई सहारा, खुली नाव माझी मझधार त्योंहीसभी काम यूँ हीं बनाएँ वि

अरविंद सवैया[ सगण ११२ x ८ +लघु ] सरल मापनी --- 112/112/112/112/112/112/112/112/1"अरविंद सवैया"ऋतुराज मिला मधुमास खिला मिल ले सजनी सजना फगुहार।प्रति डाल झुकी कलियाँ कुमली प्रिय फूल फुले महके कचनार।रसना मधुरी मधुपान करे नयना उरझे हरषे दिलदार।अँकवार लिए नवधा ललिता अँग

"सुंदरी" सवैया सरल मापनी --- 112/112/112/112/112/112/112/112/2"सुंदरी सवैया"ऋतु में बसंत उतिराय गयो, घर से सजना रिसियाय गयो क्यों।जब फागुन की रसदार कली, बगिया अपने पछिताय गयो क्यों।रसना मधुरी नयना कजरा, करते मधुपान बिलाय गयो क्यों।मन की मन में सब साध रही, अँगना चुनरी उलझाय गयो क्यों।।गलियाँ कचनार अल

अरसात सवैयासरल मापनी --- 211/211/211/211/211/211/211/212 अरसात सवैया [२४ वर्ण ] =अरसात सवैया भगण [ ऽ।।] रगण [ऽ।ऽ ] मिश्रित वृत्त सवैया है सात भगण [ऽ।।] के बाद एक रगण [ऽ।ऽ ] संधि [जोड़ने ] से जिस वृत्त का निर्माण होता है उसे छन्दस प्रेमी अरसात सवैया कहते हैं सवैया छंद को रीतिकालीन कवियों नें प्रमुखता

दुर्मिल सवैया ( वर्णिक )शिल्प - आठ सगण, सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा 112 112 112 112 112 112 112 112, दुर्मिल सवैया छंद लघु से शुरू होता है ।छंद मे चारों पंक्तियों में तुकांत होता है"छंद दुर्मिल सवैया" चित भावत नाहिं दुवार सखी प्रिय साजन छोड़ गए बखरी।अकुलात

सवैया "मदिरा" मापनी -- 211/211/211/211/211/211/211/2"छंद मदिरा सवैया"नाचत गावत हौ गलियाँ प्रभु गाय चरावत गोकुल में।रास रचावत हौ वन में क्यों धूल उड़ावत गोधुल में।।जन्म लियो वसुदेव घरे मटकी लुढ़कावत हौ तुल में।मोहन मोह मयी मुरली मन की ममता महके मुल में।।-1आपुहिं आपु गयो तुम माधव धाम बसा कर छोड़ गए।का ग

छंद - " मदिरा सवैया " (वर्णिक ) *शिल्प विधान सात भगण+एक गुरु 211 211 211 211 211 211 211 2 भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भा"छंद मदिरा सवैया" वाद हुआ न विवाद हुआ, सखि गाल फुला फिरती अँगना।मादक नैन चुराय रहीं, दिखलावत तैं हँसती कँगना।।नाचत गावत लाल लली, छुपि पाँव महावर का रँगना।भूलत भान बुझावत हौ

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