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शतरंज

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मोहरा.....!फिर वही शोर ,भीतर , बाहरदौड़ है ,अजीब -सी कश्मकश है !कुछ दिख रहा है , कुछ दिखाया जा रहा है।फिसल रहा है समय, हाथ से रेत की तरह ,शतरंज की बिसात लगी हैहाथी ,घोड़े ,वज़ीर और राजा मस्त चल रहे हैं ,पिस रहा है तो केवल मोहरा !उसका वक्त कब आएगा ?क्या वह कभी अपनी बात क

शतरंज का खेल जाननेवाला ही शतरंज की चाल समझ सकता है. पहली चाल धोखा होती है जो छठी या कभी कभी 10 चाल को कामयाब बनाने के लिए की जाती है. शतरंज में लकड़ी के मोहरे होते है जिनमे भावनाएं नहीं होती, जिनमे आत्मा नहीं होती. अगर कोई जिंदगी में इंसानों के साथ

वाजिदअली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई नृत्य और गान की मजलिस सजाता था , तो कोई अफीम की पीनक ही के मजे लेता था। जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद को प्राधान्य था। शासन विभाग में, साहित्य क्षेत्र में, सामाजिक व्यवस्था

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