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शायर

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मैं तेरे साथ जी नहीं सका, अकेलामर तो सकता हूँ डॉ शोभा भारद्वाज रिसेटेलमेंट कालोनी के छोटेप्लाट में बने चार मंजिला घर में हा –हाकार मचा था उस घर के जवान बेटे ने फांसीलगा ली थी घर का कमाऊ बेटा तीन भाई पाँच बहनों का भाई अंधे पिता ,बीमार माँ कासहारा जिसने भी सुना हैरान रह गया फांसी के बाद लम्बी गर्दन

रहे जुदा हो गई अब अजनबी हो जायेंगे .. तेरे मेरे सपने सनम अब तू ही बता कहा जायेंगे ...!! राह में कोई नहीं तेरे यादो के सिवा हमसफ़र ...तेरी याद अब ना आई तो शायद हम मर जाएंगे ...!!! दिवार ही दिवार खड़

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