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सुगंध

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सुगंध साथ सुमन के महकती ख़ुशी से रहती है, ये ज़ंजीर न बंधन के चहकती ख़ुशी से रहती है। फूल खिलते हैं हसीं रुख़ देने नज़ारों को, तितलियाँ आ जाती हैं बनाने ख़ुशनुमा बहारों को। कभी ढलकता है कजरारी आँख से उदास काजल, कहीं रुख़ से सरक जाता है भीगा आँचल। परिंदे भी आते हैं ख़ामोश चमन में पयाम-ए-अम्न लेकर, न लौटा

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