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उथल-पुथल

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तनहाई घिरने लगा मन में अंधेरा, जब शांत होकर मैं आई। मन में होने लगी उथल-पुथल, यादों ने ली अंगड़ाई। कोई नहीं था, संग मेरे, मैं थीं खुद में समाई। मैं थीं,और थीं मेरी तन्हाई, खुशी हो, या हो गम हम दोनों ही तो है, इसके सिवा है किसकी परछाई? मैं और तन्हाई......... आंखों की नमी उभर आई, मुस्कुरा कर लबों ने

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