"इस तन पर सजती दो आँखेंबोलो किस से ज्यादा प्रेम करोगे,काटना चाहो अपना एक हाथतो बोलो किस हाथ को चुनोगे "कुछ ऐसा ही होता है बेटी का जीवनसब कहते उसे पराया धनबचपन से ही सीखा दिए जाते हैंबंदिश में रहने के सारे फ़नएक कोख एक कुटुंब में जन्मेंफिर भी क्यों ये बेगानापन ?कुछ ऐसी थी उसकी कहानीजो थी महलों की रानी
महिला सशक्तिकरण पर हिंदी कविता आज की नारी मैं आज की नारी हूँ न अबला न बेचारी हूँ कोई विशिष्ठ स्थानन मिले चलता है फिर भी आत्म सम्मान बना रहा ये कामना दिल रखता है न ही खेला कभी women कार्ड मुश्किलें आयी हो चाहे हज़ार फिर भी कोई मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाये तो अच्छा लगता है
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हिंदी कविता क्यों क्यों एक बेटी की विदाई तक ही एक पिता उसका जवाबदार है ?क्यों किस्मत के सहारे छोड़ कर उसको कोई न ज़िम्मेदार है?क्यों घर बैठे एक निकम्मे लड़के पर वंश का दामोदर है ?क्यों भीड़ चीरती अपना आप खुद लिखती ए
यूपीएससी परीक्षा में उसे 85 वें रैंक (पूरे भारतमे)के साथ, “संजुक्ता पाराशर” एक आरामदायक डेस्क काम के लिए चुनी जा सकती थीं। जवाहरलाल विश्वविद्यालय से Ph.Dकरने के बाद औरदो साल बेटे के होने के बावजूद उन्होनें एक कठिन रास्ता चुना जैस्पर चलते हुए वो हर रोज आतंक से लड़ रही
ये केसा दौर आ गया इंसान खुद ही खुद को मार रहा है ।बेटे की अती चाहत में बेटी को तु क्यों मार रहा है ।।अपने मान समान के कारण ग़लत क़दम तु क्यों उठा रहा है ।बेटे की अती चाहत में बेटी को तु क्यो मार रहा है ।।बेटीयॉं घर की लक्ष्मी है पगले बेटीयॉं घर की शान है ।बेटियों की ही बदौलत से तो यह सारा संसार है ।