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याद

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रातो को  तेरी याद आ गईआंखों में  मेरी बिखरा गईसूखी  पवन ,  महका  गईशर्द हवाओ में पिघला गईमोहब्बत में मेने कूबूल ये कियाकिताबे  देकर,  वो  शरमा  ग

परीलोक की परी हो या शहजादी हो किसी जन्नत की  तुमको देखा लगा ऐसा मानो रब ने पूरी हर मन्नत की।

कितनी विचित्र बात है न जिस इंसान ने मेरी आँखों से बिखरते मोतियों को

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✒✒अश्विनी कुमार मिश्रा की कलम✒✒


गुज़रे हुए वक़्त को हम भी ढूंढते हैं

मगर

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याद हूँ मैं

भुलाएँ ना भुला पाओगें

ऐसा ही हूँ मैं

जितना भुलाओगें मुझे

सब समझ आता है...मैं भी इंसान हूँ मुझे सब समझ आता है बस मन ये बावरा भावनाओं में बह जाता है कभी तुझे याद करके तो कभी बात करके इन आँखों से शांत सी बूंदों का कहर बाहर आता है प्यारी से तेरी मुस्कान और हाथ पकड़ साथ चलना हमें भी अच्छा लगता था तेरा बात-बात पर मचलना आंखे जो बंद करूं तो वो बीता मंजर नजर आता ह

ये नजरें अभी भी ढूंढती है तुम्हेंफर्क इतना है कि पहले हकीकत थे तुम, अब याद होदिल अब भी प्यार करता है तुम्हेंपहले नाम था रिश्ता का अब मेरी जिंदगी में तुम बेनाम हो...

याद में।रात हम आपकी याद में सो न सके।करवटे बदलते हुए रात गुजारी।कई बार इस ठंड में,पसीने से तर-बतर हुआ आपकी याद में। न जाने क्यों ऐसा लगा हम आपके करीब होते।कॉल से आपके करीब आने की कोशिश किया, पर आपने करीब आने न दिया। इतना नाराज़ न हो ए मेरी जिंदगी। वरना छूने से पहले बिखर जाऊंगा।आँसू भी झरते रहे तेरी य

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जब याद आते हैं वोतो अक्सर याद आते हैंतुझे तो अब 'अश्विनी' वोपहले से भी बढ़ कर याद आते हैं

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तू न होगा तो बहुत याद करूँगा तुझ कोअब याद न आओ रहने दोकाश तुम उस की हक़ीक़त पे नज़र डाल सकोलम्हों को भुलाना खेल नहीं "अश्विनी"मैं ख़ुद भी उन्हें याद आऊँगा......

बुरी याद बन कर हम किसी को सताते है....चलो अच्छा है इसी के बहानेतो हम उन्हें याद आते हैं....-अश्विनी कुमार मिश्रा

कवितातुम्हारी याद तुम यादों से विस्मृत हो जाओ सम्भव नहीं है ये ,तुम पटल से उतर जाओ स्वीकृत नहीं है ये । न करो याद तुमफ़र्क पड़ता है क्या ?न करो विश्वास तुमसमय रुकता है क्या ?श्वास तो चलते हैंहृदय भी धड़कता है दोनों ही के स्पंदन मेंध्वनि हो या प्रतिध्वनि तुमसे ही होकर आती

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यह कविता मेरे आराध्य पिता जी को समर्पित:-देखो दिवाली फिर से कुछ, यादें लाने वाली है।पर तेरी यादों से पापा, लगती खाली-खाली है।।याद आता है पापा मुझ को साथ में दीप जलाना।कैसे भूलूँ पापा मैं वो, फुलझड़ियां साथ छुटाना।।दीपावली में पापा आप, पटाखे खूब लाते थे।सबको देते बांट पिता जी, हम सब खूब दगाते थे।।तेरे

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एक रोग सारी दुनिया कीदिखलाता है सच्चाई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।ऐसे उसने पैर पसारेकाम-धाम सब बंद हुएलोगों ने तेवर दिखलाएरिश्ते सारे मंद हुए।और गांव के कच्चे घर कीहूक हृदय में लहराई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।प्रेम फला-फूला करता थागाँव गली-घर-आँ

साथ घूमते थे नंगे पांव दूर तक बाग में खेत मेंऔर सड़क परकभी नहर के किनारेपूरे एक-एक प्रहर तकनहाते थे डुबकियां लगातेधूल फेंकते दोस्तों परगम ना था फिक्र न थीमां से पिटने कीन था पिता से डांट खाने का डरमगर फिर भी एक भय व्याप्त थाबड़े भाई केहाँथ उठ जाने परगम न था फिक्र न थीसूखी रोटी भीभर पेट खाते थेकभी अपन

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आप अजीब शब्द लगता है मुझे क्यूंकि जब लोग मिलते हैं तो अजनबी होते हैं तो आप बोलते हैं. . मगर तुम जब गुस्सा होते थे तब बोला करते , या फिर तब जब बहुत प्यार से बात करनी होती

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जब भी तेरी वफाओं का वह ज़माना याद आता है,सच कहूं तो तेरी यादों का पागलखाना याद आता है।कसमों की जंजीर जहां पर, वादों से बनी दीवारें हैंझूठ किया है खंज़र से तेरे नाम की उन पर दरारें है।टूट चुका सपनों का बिस्तर, अफ़सोसों की चादर हैतकियों को गीला करती अश्क़ों की जहां फुहारें हैं।जलती शमा में कैद वहां, परवान

मापनी, 2122 1212 22/112, समान्त- आर, पदांत- करते हैं"गीतिका" याद कर सब पुकार करते हैंजान कर कह दुलार करते है देखकर याद फ़िकर को आयीदूर रहकर फुहार करते है ।।गैर होकर दरद दिया होगा ख़ास बनकर सवार करते हैं।।मानते भी रहे जिगर अपनाधैर्य निस्बत निहार करते है।।लौट आने लगी हँसी मुँहपरमौन महफ़िल शुमार करते हैं।

हो जो फुर्सत तो आ के मिल ले कभी, हर घड़ी तुझको ही बुलाता हुं,सोचता हूँ तुझे ही मैं अक्सर, गीत तेरे ही गुनगुनाता हुं,तु तो मशरूफ़ दूर बैठी है, तेरी यादों से दिल लगाता हुं,तेरी चाहत में जो भी लिखता हुं, तेरी तस्वीर को सुनाता हुं,यादें देती हैं तेरी जब दस्तक, खुद को भी मैं तो भूल जाता हुं,बेख़बर अजनबी मे

शाम हो गई तुम्हे खोजते माँ तुम कब आओगीजब आओगी घर तुम खाना तब ही तो मुझे खिलाओगी, रात भर न सो पाई करती रही तुम्हारा इंतजारसुबह होते ही बैठ द्वार निगाहें ढूंढ रही तुम्हे लगातार,पापा बोले बेटा आजा अब माँ न वापिस आएगी अब कभी भी वह तुम्हे खाना नहीं खिलाएगी,रूठ गई हम सब से मम्मी ऐसी क्या गलती थी हमारीछोड

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