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काफी अरसे से अखबार पढ रही हूं। हर रोज देश दुनिया के बदलते रंग, ख्वाहिशे, मिज़ाज, लिबास, देख रही हूं। बदलती तारीखों में ना बदलती सोच देख रही हूं। अखबारों की स्याही सूख नहीं पाती कि स्याह खबर फिर दर्ज हो जाती है अख्बार के किसी कोने, कालम में। जिन मुद्दों से लाभ है सियासत को उन्हें सुलझाया नहीं उलझाय

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