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अनुभूतज्ञानसूत्र

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अहंकार व्यक्ति को पतित करता है इसीलिए अंकारी का सिर सदैव नीचा होता है। अहंकारी दूसरों की सुनता नहीं है इसलिए सत्य सदैव उससे छिप रहता है। घट-घट में ईश्वर व्याप्त है जो यह समझता है उसे सबमें ईश्वर के दर्शन होते हैं  और उससे अहंकार कोसों दूर हो जाता है, ऐसे में वह कुकर्म भी नहीं करता है। तब सहज, सरल व 

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तन की पवित्रता से अधिक मन की पवित्रता महत्त्वपूर्ण है। जो तन से पवित्र होते हैं और मन मैला होता है वे कुटिल होते हैं नाकि पवित्र। तन की पवित्रता स्वास्थ्यवर्धक है जबकि मन की पवित्रता परमार्थवर्धक है। दुःख में काम आने वाला मन से पवित्र होता है। जो दूजों के दुःख में काम नहीं आता है वह कभी मन से पवित

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