जन्नतनशीन आयशा,दुआओं में याद रखना डॉ शोभा भारद्वाज 25 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले आयशा साबरमतीकी गोद में समा गयी वह पढ़ी लिखी थी जीना चाहती थी. वह केवल 23 वर्ष की थी .उसकेशौहर आरिफ ने सोचा था वह चुपचाप सदैव के लिए अपने मायके में सो जायेगी लेकिन आयशाने चुपचाप जिन्दगी को अलविदा नहीं कहा अप
बरसाती पानी से बचने के लिए वरदान थी बरसाती|घर की छतो, छप्परो में चिपकाना शान थी बरसाती|गल्ला मंडी, सब्जी मंडी में बनी रावटी में बरसाती|आटा चावल दाल मसाले कुरकुरे बंद हैं बरसाती में|नाम बदल बरसाती का पोलिबैग पोलिथीन कहने लगे|बना कर बरसाती की बोतल को रेल नीर कहने लगे|बन गई वरदान समाज के लिए खाली हाथ ब
प्रिय साथियों शब्दनगरी में आपका स्वागत है। ये कहानी कुछ सीख देती है हम सबको। इसलिए हमने अपने एक साथी की इस रचना को यहां रखना उचित समझा। शब्दनगरी टीम से अपेक्षा है कि वह इसे उचित स्थान दे। ताकि लोगों तक एक संदेश पहुंच सके। दरअसल, मोहल्ले में रहने वाली दो लडकियों मीना और सोनाली की शादी एक ही दिन तय