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मत्तगयंद सवैयासात भगण अंत दो गुरु211 211 211 211, 211 211 211 22साजन छोड़ गए परदेश लगे घर सून मुझे दिन राती।दूर पिया सुध में प्रियसी दिन रात जलूं जस दीपक बाती।कौन कसूर हुआ हमसे प्रिय छोड़ गए सुलगे निज छाती।ब्याह किया खुश थे कितना पर आज कहें मुझको अपघाती।निश्चल प्रेम किया उनसे समझे न पिया दिल की कछु बा

"चमचा भाई"काहो चमचा भाई कैसे कटी रात हरजाईभोरे मुर्गा बोले कूँ कूँह ठंडी की ऋतु आईहाथ पाँव में ठारी मोरे साजन की बीमारीसूरज ओस हवाई घिरि बदरी दाँत पिराई।।आज का चमचा, चमचों की के बात कर, हरदम रहते चुस्तचखें मसाला रस पियें, छौंक लगे तो सुस्त।।बड़े मतलबी यार हैं, हिलते सुबहो शामकंधे पर आसन धरें, चमची सह

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