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आयुर्वेद

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बाबा रामदेव के साथ देश में आंदोलन-: राजीव दीक्षित का जन्म उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले में सन् 1967 में 30 नवंबर को हुआ था। राधेश्याम दीक्षित इनके पिता का नाम था और इनकी मां का नाम मिथिलेश कुमारी था। माता पिता के द्वारा ही इनका नाम राजीव रखा गया। अपने प्रारम्भिक शिक्षा की शुरुआत वैसे ही की जैसे कि

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विशेषज्ञ का परिचय संक्षेप में :-चिकित्सक, डॉ. सूनृता तनेजा, एम.डी. (ayurveda) , आरोग्य आयुर्वेद वपंचकर्म केंद्र - फ़रीदाबाद, में आयुर्वेद और पंचकर्म द्वारा रोगियों का इलाज क

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नाक में घी डालने से लाभ –१) मानसिक शांति व मस्तिष्क को शांति मिलती है |२) स्मरणशक्ति व नेत्रज्योति बढती है |३) आधासीसी (माइग्रेन) में राहत मिलती है |४) नाक की खुश्की मिटती है |५) बाल झड़ना व सफ़ेद होना बंद होकर नये बाल आने लगते हैं |६) शाम को

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नई दिल्ली: सर्दी-जुकाम से तकलीफ बढ़ जाती है। हालांकि यह कोई गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन यह देखा जाता है कि इस बीमारी में दवाईयों का असर भी कम होता है। इसके लिए सबसे अच्छा होता है घरेलू यानी देसी नुस्खे का इस्तेमाल। घर में बनाए जाने वाले इन द

आयुर्वेद के मुताबिक हकलाने की problem मेंब्राह्मी तेल (Brahmi oil) के इस्तेमाल को बहुत हीं फायदेमंद बताया गया है। 1.ब्राह्मी तेल (Brahmi oil) को हलका गर्मकर के week में कम से कम दो बार 15 से 20 मिनट तक सर का मसाज करने से हकलाने की problem ख़त्म होती है। 2. अगर आपके बच्चो को हकलाने की problem है तो उन

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‘एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा’...ये कहावत आपने ज़रूर सुनी होगी I इसका मतलब है एक मुश्किल पर दूसरी मुश्किल आ जाना I लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि करेला और नीम दोनों ही बड़े काम की चीज़ें है I अगर आप भारत में रहते हैं तो आप करेला और नीम दोनों से ही भलीभांति परिचित होंगे I अगर हम बात सिर्फ नीम की करें तो य

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अलसी में कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, केरोटिन, थायमिन, राइबोफ्लेविन और नियासिन पाए जाते हैं। यह गनोरिया, नेफ्राइटिस, अस्थमा, सिस्टाइटिस, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, कब्ज, बवासीर, एक्जिमा के उपचार में उपयोगी है। अलसी को धीमी आँच पर हल्का भून लें। फिर मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भरकर रख

नीम के फायदे पारिस्थितिकी नीम का पेड़ सूखे के प्रतिरोध के लिए विख्यात है। सामान्य रूप से यह उप-शुष्क और कम नमी वाले क्षेत्रों में फलता है जहाँ वार्षिक वर्षा 400 से 1200 मिमी के बीच होती है। यह उन क्षेत्रों मे भी फल सकता है जहाँ वार्षिक वर्षा 400 से कम होती है पर उस स्थिति मे इसका अस्तित्व भूमिगत जल

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