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इंसान

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न तू हिन्दू बन और न बन मुसलमानतू उस्तुवार हो जाएगा जब बन जायेगा इंसान।©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"     ग्वालियर(म.प्र.)

बस नाराज होने तक का हक दिया आपनेउसमें भी खुद मान जाने को कह दिया आपनेइतनी अकड़ है किस बात की...अरे ! हम भी इंसान हैं हमें समझा क्या है आपनेबस आपकी चले ये वो राह नहीं है...कोई पकड़ के झटक दे ये वो बांह नहीं हैईमान-धर्म आप देखो, बात बढ़ाई थी आपनेअरे ! हम भी इंसान हैं हमें समझा क्या है आपनेसुना है आपने हम

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एक लीटर पानी से मंहगा तेल, कर के बोझ तलेदबा इंसानजीएसटी, सीएसटी को विशेषज्ञ चाहेकिसी भी तरह से लोगों को समझाये लेकिन आम लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्‍हेंसरकार ने जो एक देश एक टैक्‍स का वादा किया था वह कहां है? हम पैदा होते हैं तबसेलेकर मरते दम तक एक नहीं तरह तरह के टै

मेरी तो तकदीर में यही लिखा है,इसी बहाने अपना दोष तकदीर पे मढ़ता है; तुम्हारी तो तकदीर बहुत ही अच्छी है,कह के अपनी तकदीर को कोसता है;चल छोड़ यार मेरी तकदीर में वह नहीं ,कह के दिल को संतोष दिलाता है;मेरी तो तकदीर साथ ही नहीं देती,कह के अपनी तक

बदल गयी है ,इंसान की अब अपनी फितरत; बदल रहा है,इंसान अब पैमाने ए कुदरत।जीने की परिभाषा,विकास की अभिलाषा;सब कुछ बदल रहा,पूरी करने अपनी लालसा। प्रकृति को छेड़ , छीन पशु पक्षियों का आसरा;स्वार्थ के अतिरेक,जंगल पे

ना वैक्सीन, ना विकेंसी बेरोजगार तो पहले भी कम न थे। एक के पीछे लगने वाली लाइन हर जगह ही है। कोरोनावायरस ने लाइन को कुछ इस तरह खत्म किया कि अब हर चीज आनलाइन हो गई। पैसा, पढ़ाई, कला, कलाकार, काम, ख्वाब, रिश्ते, बात, मुलाकात। जो बेहतर मार्क्स लेकर आ रहे हैं, यह सरकारी तंत्र में कायदे कागज कानून वाली ज

अर्थ जीते जी तो लोग नजर चुराते हैं, उंगली उठाने में खोए रहते हैं और मरते ही लोग कंधा देने चले आते हैं। चार का रिवाज कम सा हो रहा है। क्योंकि अब के इंसान का शरीर बेदम हो गया है। सिर्फ मुंह में जुबान और हाथ में कमान रह गई है। घरों से कई तानें बाने में बुनी चारपाई हट गई है। जिस पर बैठ लोग कितनी ही बात

आज वह फिर खड़ा है ,कठघरे में ,दोषी बन!वह ,जिसनेइंसान के बड़े से बड़े घाव पर मरहम लगाया। आज उसी के आरोपों से घायल यहाँ आया । कहता है – मैंने हँसाया या रुलाया, हर बार,तुझे सबक ही सिखाया । अनुभव भी दिए, आगे बढ्ने का हुनर भी बताया । ये तो तूने मेरी कद्र नहीं की, अपनी नासमझियों के लिए, मुझे ही दोषी ठहराया

लिखा ओंकार ने कभीबैठकर इक दिन सच में मानव तूँ इक दिन हैरान होगारुकेंगी बसें विमान ट्राम और रेलें बंद पलों मेंसारा सामान होगालिखा ओंकार ने कभी बैठकर इक दिन सच में मानव तूँइक दिन हैरान होगापक्षी चहकेंगे सुखी साँस होगा प्रदूषण रहित तबसारा संसार होगापाताल धरती पानी आकाश पर काबज कैद घर में इक दिनइंसान हो

इंसान की जुबान से बड़ी उलझन हैं धर्म,जातिवादमे, नहीं हैं उलझन इंसान मे। हरि,अल्लाह ने मिलकर हर वर्ग मे, नर और नार बनाया।जिससे चलता जग संसार हैं,कर, कर्म माया मोह कमाया।फस इंसान जगत मे,कर्म, माया और मोह से ज्ञान बनाया।कर ज्ञान की परिकल्पना से,वेद,रामायण, संविधान बनाया।जब न चलते बना इंसान से,कार्यपालि

इंसान में इंसानियत होती है और जानवरों में? कोई कहता है हैवानियत तो कोई कहता है वहशियत जबकि ये सब कुछ इंसानों में ही होती है. इंसानियत, वहशियत और हैवानियत. जानवरों में होती है जांवरीयत जो इंसानियत से कही बेहतर है. जानवरों में लोभ नहीं होता, जानवरों में ब

नमस्ते ,दोस्तों भगवान ने हम सभी को एक जैसा बनाया हे,इंसान बड़ा या छोटा अपने कर्मो से होता हे या फिर कही न कही उसकी काबिलियत में कुछ कमी होती हे तो वह अपने आप को दुसरो से छोटा समझने लगते पर अपनी कमियों को दूर नहीं करते और निराश हो ज

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एक अच्छे इंसान की परिभाषा क्या है?एक अच्छा इंसान हमेशा इन बातों का ध्यान रखता है।जिसे हम परिभाषा भी कह सकते है।1 *उसमें ईमानदारी, इंसानियत, मनुष्यत्व , आदि गुण भी जरूर होंगे।2 *वह अपनी सोच मात्र अपने तक ही सीमित नही रखता। अर्थात वह स्वार्थ से दूरी बनाये रखता है। दुसरो के

जान अभी बाकी हैं | हरि को नहीं देखा इंसान बनाते हुए|इंसान को देख हैं हरि को बनाते हुए |अमीरों की लकड़ियाँ उनकी अस्थिमंजर हैं|उनकी अस्थिमंजर गरीबो की छत्र छाया हैं |गौर से देखा उनको चौक-चौराहो मे बैठे हुए|सवार ट्रक मे ढ़ोल लंगाड़ो मे रंग गुलाल उड़ाते हुए|जल समाधि की वजह से उनकी काया बदल गई|बची अस्थिमंजर

कथा वाचन एक बहुत बड़ी कला है और जो इस कला का माहिर है उसी का राज है. आप को अगर कथा वाचन नहीं आता तो आपकी सच्चाई भी झूठ है, और कथा वाचक की कथा में कुछ हो ना या हो पर भक्तों पर उसका असर ज़रूर पढ़ता है. भक्ति में सच्चाई को नहीं ढूंढा जाता यदि सच्चा

कुछ सवाल आप के नाम, इन सवालों का जवाब दे कर आप करोड़ पति तो नहीं बनेगे पर इंसान ज़रूर बनेगे. 1. अंगुलिमाल की कहानी के बारे में क्या जानते है? 2. महात्मा बुद्ध की हत्याओं का षड्यंत्र कब कब और किसने रचा था? 3. महाराजा हर्षवर्धन के बौद्ध समांगम पर हमला

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कैसे समझाऊ?देश विकास कर रहा है, सोना आसमान छू रहा।किसी का आँख मुँह तिरछा ,यह सेल्फी कह रहा।पानी जमीन का घटा, पानी चाँद की गोद मे दिख रहा।मानव कर प्रकृति को बर्बाद, रहने चाँद में जा रहा।दिल्ली का जाम झेला नही जाता, हैलीकॉप्टर की बात सुन

गुलामी की जंजीरगुलामी की जंजीरों को न तोड़ पाए हैं, न तोड़ पाएंगे।पहले धरती गुलामी की जंजीरों से जकड़ी जा रही थी।और कोई न मिली फसल उगाने को तो नील उगाई जा रही थी।कोई उस वक्त को समझ न पाया, कोई बन्दी बनकर , कारागार की काल कोठरी में रात गुजर कर बहन बेटियों को बन्दी बना लेते, या प्यार के जाल में फसा कर अ

अन्धकार से लड़ना और अंधकार में लड़ना दोनों में ज़मीन आसमान का फ़र्क है. आज लोग अँधेरे से नहीं बल्कि अँधेरे में लड़ रहे है. आफ़ताब की रोशनी और चाँद की चाँदनी भी इस अंधकार को खत्म

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मैंने ये कविता आदमी और कुत्तों के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए लिखी है. मैंने देखा कि ईश्वर कुत्ते को स्वतन्त्र निर्णय लेने की शक्ति से वंचित रखा हुआ है. जबकि आदमी के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता ह

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