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उलझन

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हर घड़ी गम से गुफ़्तगू में निकल जाती है,गम अगर छोड़े कभी तो कहीं ख़ुशी से मिलूं, आँखों में अश्क़ की नदियां-सी उभर आती है,आँखों के अश्क़ रुके तो कहीं हँसी से मिलूं, राह कोई भी चलूँ जख्म हैं स्वागत में खड़े,दर्द फुर्सत दे अगर तो कहीं राहत से मिलूं, रोजमर्रा की जरूरतों से जंग जारी है,प्यास-पानी से बढे बात तो

हर घड़ी गम से गुफ़्तगू में निकल जाती है,गम अगर छोड़े कभी तो कहीं ख़ुशी से मिलूं,आँखों में अश्क़ की नदियां-सी उभर आती है,आँखों के अश्क़ रुके तो कहीं हँसी से मिलूं,राह कोई भी चलूँ जख्म हैं स्वागत में खड़े,दर्द फुर्सत दे अगर तो कहीं राहत से मिलूं,रोजमर्रा की जरूरतों से जंग जारी है,प्यास-पानी से बढे बात तो चाह

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