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उल्लाला

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उल्लाला छंद (माँ और उसका लाल)एक भिखारिन शीत में, बस्ते में लिपटाय के।अंक लगाये लाल को, बैठी है ठिठुराय के।।ममता में माँ मग्न है, सोया उसका लाल है।माँ के आँचल से लिपट, बेटा मालामाल है।।चिथड़ों में कुछ काटते, रक्त जमाती रात को।या फिर ताप अलाव को, गर्माहट दे गात को।।कहीं रिक्त हैं कोठियाँ, सर पे कहीं न

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