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कमबख्त

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जिंदा हूं या नहीं, कुछ समझ ना पाया; पहले की तरह फिर जीना चाहता हूं,कमबख्त ये कोरोना,सरल होने नहीं देता;जीने की राह को समतल बनाऊं,लेकिन ये दुश्मन उसे होने नहीं देता;कमबख्त ये कोरोना,जीने नहीं देता।सोचा था जल्दी ही चला जाएगा,परन्तु जाने का अब ये नाम नहीं लेता।कितने ही बिछड़

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