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क़लम

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कायर नही हूँ मैंक्यो मानु मैं अपनी हारदुनिया न जीत पाऊतो हारु न खुद सेजो जीत ना पाया मैंतो क्या मैं मर जाऊइतना कमजोर नही मैंकायर नही जो मर जाऊ मैं......

कलम आज उनकी जय बोलपहले मन की गांठों को खोलराष्ट्र की अस्मिता बड़ी अनमोलबचाई है जिन्होंने देश की लाजकलम आज उनकी जय बोलआज कोई श्रृंगार मत लिखिएसावन गीत, मल्हार मत लिखिएवीर पुराण रच डालिए दिल खोलकलम आज उनकी जय बोलधूल चटा देना बैरी को रण मेंआस्तित्व मिला दो अब कण मेंफिर से कर दी नैया डांवाडोलकलम आज उनकी

कौन सुने अब व्यथा हमारी, आज अकेली कलम हमारी,जो थी कभी पहचान हमारी, आज अकेली कलम हमारी।हाथों के स्पर्श मात्र से, पढ़ लेती थी हृदय की बाते,नैनों के कोरे पन्नों को, बतलाती थी मेरी यादें।कभी साथ जो देती थी, तम में, गम में, शरद शीत में,आज वही अनजान खड़ी है, इंतजार के मधुर प्रीत में।अभी शांत हू, व्याकुल भ

कलम की धार जब-जब तेज़ होगी, तलवारों की तेज़ी तब कुण्ठ होगी.फ़क्र गर है उनको अपनी तलवारो का,हमारी कलम उनके लिए तलवार होगी. (आलिम)

कलम के सिपाही की विरासत को यूँ बदनाम ना करो, सिपाही हो कलम के तुम यूँ किसी के प्यादे ना बनो.ये दो लाइने कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद को समर्पित है, और उन पत्रकारों , लेखकों, कवियों और शायरों को उनका धर

वो क़लम नहीं हो सकती है जो बिकती हो बाज़ारों में ! क़लम वही है जिसकी स्याही, ना फीकी पड़े नादिया की धारों में !! क़लम वो है जो बनती है, संघर्ष के तूफान से ! लिखती है तो बस सिर्फ़ मानवता क़ी ज़ुबान से !! क़लम चाकू नहीं खंज़र नहीं, क़लम तलवार है ! सत्यमेव ज्यते ही इस

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