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कशमकश

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मोहरा.....!फिर वही शोर ,भीतर , बाहरदौड़ है ,अजीब -सी कश्मकश है !कुछ दिख रहा है , कुछ दिखाया जा रहा है।फिसल रहा है समय, हाथ से रेत की तरह ,शतरंज की बिसात लगी हैहाथी ,घोड़े ,वज़ीर और राजा मस्त चल रहे हैं ,पिस रहा है तो केवल मोहरा !उसका वक्त कब आएगा ?क्या वह कभी अपनी बात क

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