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खोखा

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मन मे कुछ और पहली हीनज़र मे दिया उसने धोखा।हम भी नकम थे उसीके गली मे,रख दियापान का खोखा।जब भीनिकलती वो अपनी गली से,नजरेलड़ाके वो, नज़रेचुराती वो।कभीइतराकर कभी मुस्कराकर,हमे वोजलाती, हमे वोजलाती।जाती कहाँथी? हमे न बताती,हम भी उसीकी यादों मे जलने लगे...पहली हीनज़र मे दिया

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